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• अहंकार में हम फूल तो सकते हैं, पर फैल नहीं सकते।
अहंकारी तो फुटबाल की गेंद की तरह होता है जिसमें हवा भर जाने पर लोगों के पाँवों के जूते ही खाती है। जीवन में अहंकार किस बात का? आसमान को देखो तो सोचो कि हम आसमान से ऊपर नहीं उठ सकते और ज़मीन को देखो तो सोचो कि घमंड किस बात का, आख़िर सबको इसी मिट्टी में पलीत होना है। आख़िर सबकी नाव समुद्र में है, न जाने किस क्षण क्या हो जाए? • यह व्यर्थ का ग़रूर है कि मुर्गो समझता है कि उसने
अंडा देकर किसी नक्षत्र को जन्म दिया है और बैलगाड़ी के नीचे चलने वाला कुत्ता समझता है कि उसी के कारण गाड़ी चल रही है। भाई, जीवन में झुकना सीखिए, हमारी तो औकात ही क्या है बड़े-बड़े महल खंडहर हुए हैं और बड़े-बड़े राजा-महाराजा
चला-चली के खेल के हिस्से बने हैं। • स्वयं को सरल बनाइए, विनम्र और मधुर बनाइए। जो
लकड़ी सीधी होती है वह राष्ट्रध्वज को लहराने का गौरव प्राप्त करती है। टेढ़ी-मेढ़ी लकड़ियाँ तो मात्र चूल्हे में ही जलाई जाती हैं।
2015
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