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तरह बनें जो जैसे-जैसे फलों से लदता है नमता चला जाता है। उस काठ की तरह न बनें जो टूट तो सकता है, पर नम नहीं सकता। मित्रों को नमस्कार करने की आदत डालिए और अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करने की। अभिवादन के बदले अभिवादन मिलता है और प्रणाम के बदले आशीर्वाद। बड़ों के आशीर्वाद यदि जीवन का धन है तो सोचिए कि आप अब तक यह धन कितना बटोर पाए हैं। नमस्कार अहंकार का समाधान है। रावण यदि अहंकार का प्रतीक है तो राम नम्रता के । जीवन में यदि लघुता
और नम्रता रखेंगे तो यह कहावत स्वतः आप पर चरितार्थ हो जाएगी : लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर;
कीड़ी शक्कर ले चली, हाथी के सिर धूर। .. अहंकार को सोडावाटर की शीशी की गोली समझिए जो
दूसरों की विशेषताओं को आपके अंदर नहीं जाने देती और आपकी विशेषताओं को अंदर से बाहर नहीं आने देती।
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