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________________ इस तरह उगाना, पकाना, चबाना, पचाना - यह भी अहिंसामूलक व सावधानीपूर्वक हो । भगवान चौथा सूत्र देते हुए कहते हैं - अगर हम किसी वस्तु को उठाते हैं और रखते हैं तो वह भी हमें सावधानीपूर्वक रखनी और उठानी चाहिए। अर्थात् वस्तु को रखने के पूर्व देख लेना चाहिए वहाँ कोई जीव-जन्तु तो नहीं है। कहीं भी बैठने से पहले उस स्थान पर देख लें कि वहाँ कोई जीवजन्तु तो नहीं है। अगर है तो पहले उसे हटाएँ फिर वहाँ पर बैठे। महावीर प्रभु की अंतिम बात है - व्यक्ति मल-मूत्र का विसर्जन भी सावधानीपूर्वक करे । जहाँ आप मल-मूत्र विसर्जन कर रहे हैं उस स्थान को भी एक बात ज़रूर देख लें कि वहाँ किसी जीव का बिल तो नहीं है अथवा चींटियाँ-मकोड़े आदि तो नहीं हैं। यह भी अहिंसा-धर्म का पालन है। यहाँवहाँ कहीं भी थूक या कफ न गिराएँ क्योंकि उस पर मक्खियाँ आदि आ जाती हैं अतः उस पर भी मिट्टी डाल दें। अन्यथा वे मक्खियाँ दूसरी जगह जाएँगी तो रोग के कीटाणु भी इधर-उधर ले जाएँगी। रोगों को न फैलाना अस्पताल बनाने का पुण्य कमाने के समान है। इस तरह हम अहिंसा को जीवन में जीने के ये छोटे-छोटे पाठ अपने साथ जोड़ सकते हैं। अहिंसा वास्तव में कोई फिलोसोफी नहीं है, बल्कि जीवन-शैली है। व्यक्ति जितना अहिंसक ढंग से जिएगा, वह उतना ही स्वस्थ, सफल और मधुर जीवन का मालिक बन सकेगा। आप सब अहिंसा-धर्म के अनुयायी बनें, यही शुभेच्छा है। इसी मंगल भावना के साथ नमस्कार ! ८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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