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________________ सेनापति के लड़के ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया और मुझे गालियाँ दीं। सभा में जैसे ही अन्य मंत्री, वज़ीर, सेनापतियों ने यह बात सुनी तो वे गुस्से से भर गए कि यह किसकी ताक़त कि कोई राजकुमार को गालियाँ दे सके। इस पर महामंत्री ने सलाह दी कि अगर सेनापति के पुत्र ने राजकुमार को गंदी गालियाँ दी हैं तो उसे देश निकाला दे देना चाहिए। दूसरे ने कहा - उसकी तो जीभ ही काट देनी चाहिए। तीसरे ने सलाह दी उसे फाँसी पर लटका दिया जाना चाहिए । - बादशाह ने इन सब बातों को सुनकर अपने बेटे को पास में बुलाकर गद्दी पर बिठाया और कहा- बेटा, अगर तुम्हें किसी ने अपशब्द कहे हैं तो मेरी यही सलाह है कि तुम उसे माफ़ कर दो । यदि तुम अपराधी को क्षमा कर सकते हो तो यही तुम्हारी सच्ची वीरता होगी। अगर तुम ऐसा नहीं कर सकते हो तो मैं तुम्हें रज़ा देता हूँ कि तुम भी उसे गाली दे दो। पर हाँ, जब गाली देने की कोशिश करो तब बस इतना-सा सोच लेना कि क्या गाली देना तुम्हें शोभा देगा ! जैसे उसके गाली देने पर लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि उसकी ज़बान काट ली जाए, वैसे ही कल को तुम्हारे लिए भी कहा जा सकता है कि राजकुमार की ज़बान काट ली जाए क्योंकि उसने गाली दी है । क्रोध करने का कारण उपस्थित हो जाने के बावज़ूद जो व्यक्ति शांत रहता है वही सच्चा वीर होता है । क्रोध करने का कोई निमित्त ही न हो तो सभी शांत हैं पर क्रोध करने की वज़ह होने पर भी जो स्वयं को शांत रखने में सफल हो जाए तो यह सच्ची वीरता होगी । यही है असली उपशम, यही है असली क्षमा । सावधानीपूर्वक हम तभी बोल पायेंगे जब यह भाव भी रखेंगे कि सच्ची वीरता इसी में है । हमारी छाती तभी ३६ इंच की होगी जब हम औरों के प्रति क्षमा और प्रेम की भावना भी अपने साथ रखेंगे। बोलें पर सावधानी से बोलें ताकि बोलने में हमसे कम-से-कम ग़लती हो । याद रहे भाषा के कारण ही सैकड़ों झमेले शुरू होते हैं और इस भाषा के जरिए ही पचासों झगड़े सुलझ और सँवर जाते हैं । यही ज़बान ठीक से चले तो रिश्ते बनाती है और ठीक से न चले तो रिश्तों में खटास लाती है, रिश्तों को तोड़ती है, महाभारत रचती है। मेरे विचार से जीवन में सबसे अधिक आवश्यकता इस जबान को संयम में, नियंत्रण में रखने की है। जिसने अपनी ज़बान को नियंत्रण में रख लिया वही असली Jain Education International For Personal & Private Use Only ८१ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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