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________________ चलते समय अहिंसा का पालन करने के लिए गपशप करते हुए न चलें वरन् नज़र को नीचे डालते हुए चलें ताकि हमारे पैरों के नीचे आकर छोटे-छोटे जीवों की हत्या न हो जाए। चलते समय अहिंसा का पालन करना धर्म का प्रथम चरण है। ऐसा न हो कि हम बड़े-बड़े धर्माचरणों के प्रति तो जागरूक रहें, पर छोटे धर्मों के प्रति लापरवाह हो जाएँ। अगर बच कर चला जा सकता है तो ज़रूर बचकर निकल जाना चाहिए, पर लगे कि अन्य कोई विकल्प नहीं है तो कुछ नहीं किया जा सकता, पर हाँ, तब भी हम उस हिंसा के दोष से बच न पाएँगे। माना कि शहर में प्लेग का रोग फैल गया, उससे बचने के लिए चूहों को मारना ही पड़ेगा, तब ऐसा नहीं कि दोष नहीं लगेगा। दोष तो लगेगा ही क्योंकि हत्या हो रही है, पर तब चूहों को मारना विवशता हो जाएगी। चलते समय अहिंसा का बोध रखना क्रियामूलक अहिंसा होगी। धर्म बहुत सरल होता है। यह तो छाया की तरह सदा हमारे साथ रहता है। हमें बोध, होश और जागरूकता हमेशा अपने में बनाए रखनी होती है। अगर साधक खा-पी भी रहा है तो खान-पान में भी अहिंसा का आचरण और अनुपालन हो। एक दफा मैं बौद्ध गुरु दलाई लामा के पास था। हम लोग आपस में जैन और बौद्ध धर्म की विशेषताओं के बारे में चर्चा कर रहे थे। मैंने पूछा- क्या आप लोग मांस का उपयोग करते हैं? उन्होंने ईमानदारी से स्वीकार किया और बताया कि - भारत में रहते हुए उन्हें मांस के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती लेकिन तिब्बत में कभी-कभी उपयोग कर लेते थे। मैंने पूछा - भारत में क्यों नहीं? उन्होंने कहा - यहाँ अन्य बहुत से विकल्प मौजूद हैं। शाकाहार, दाल, चावल, रोटी आदि यहाँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं कि हमें आवश्यकता ही नहीं होती कि हम मांसाहार करें। जीवन जीने के लिए तो व्यक्ति को किसी-न-किसी चीज़ का उपयोग करना ही पड़ेगा, पर जहाँ श्रेष्ठ शाकाहार के साधन उपलब्ध हैं वहाँ अन्य विकल्प के बारे में सोचने मात्र से ही दोष लगता है। भोजन बनाने में भी अहिंसा का बोध रखना चाहिए। खाना बनाने से पहले गैस के चूल्हे, सिगड़ी आदि का परिमार्जन करें तब तीली सुलगाएँ । बर्तन आदि भी देखकर साफ करके उपयोग में लें। पानी छानकर प्रयोग करें। भोजन करते समय मौनपूर्वक भोजन करें। होंठ खुले रखकर ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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