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________________ होगा। आत्मसाधना के लिए जंगलों में गए महावीर परमार्थ भाव से वापस शहरों की तरफ लौटकर आ गए। हम लोगों की ताक़त भले ही विश्व तक पहुँचने की न हो, लेकिन जितना भी अवसर मिलता है अहिंसा के लिए प्रयत्न करना चाहिए। हम सभी को जीवों से प्रेम है, प्राणीमात्र से प्रेम है, इस पृथ्वी-ग्रह के प्रति प्रेम है, धरती पर फूल खिलने चाहिए, धरती पर जीवन रहना चाहिए, जीवन का आनन्द और जीवन का पैग़ाम रहना चाहिए। कौन कहता है जीवन का अंजाम मौत होना चाहिए । जीवन का अंजाम केवल जीवन ही होना चाहिए।। हम लोग दुनिया के प्रति भी अहिंसा का वातावरण बनाने का प्रयत्न करेंगे और स्वयं में भी अहिंसा को आत्मसात करने का प्रयत्न करेंगे। वैसे तो हम सभी शुद्ध शाकाहारी हैं, अहिंसावादी हैं। व्यक्तिगत जीवन में यह पूरा प्रयत्न करते हैं कि हमारे द्वारा किसी भी तरह का हिंसामूलक दोष न हो जाए। हमारे द्वारा किसी भी प्राणी के दिल को ठेस न पहुँचे इसका भी विवेक रखते हैं। यहाँ तक कि हमारे द्वारा किसी चींटी की, सिर में चलने वाली जूं की भी हत्या न हो जाए, पानी में रहने वाले छोटे-से-छोटे सूक्ष्म किटाणुओं की भी हत्या न हो जाए इसका हम सभी विवेक रखते हैं। इस विवेक के चलते ही हम आहार की दृष्टि से भी अहिंसा को जीते हैं, शाकाहार लेते हैं। अहिंसा में आस्था रखने वाले लोग तो शाकाहार ही नहीं वरन् शाकाहार में भी जमीकंद यह मानते हुए उपयोग नहीं करते कि जिन खाद्य पदार्थों को सूर्य की रोशनी नहीं मिलती उनमें जीवाणुओं की उत्पत्ति ज्यादा हो जाती है इसलिए व्यावहारिक जीवन में हिंसा का कम-से-कम दोष लगे इस उद्देश्य से ही जमीकंद का उपयोग नहीं करते। अब तो जैन फूड' के नाम से प्रायः हर जगह शाकाहारी भोजन उपलब्ध है। यह शाकाहार की पराकाष्ठा है कि लोग जैन भोजन को जानने लगे हैं कि उसमें आलू, प्याज, लहसुन, गाजर, मूली आदि जमीकंद का उपयोग नहीं होता है। इस तरह आहार भी अहिंसामूलक लेने का प्रयत्न करते हैं। कपड़ों में भी इस बात का विवेक रखते हैं कि हमारे द्वारा ऐसे कपड़े न पहने जाएँ जो जीवों से या पशुओं से प्राप्त होते हों जैसे- रेशम, कोमल जानवरों की खाल आदि। इस प्रकार के कपड़े हिंसा के निमित्त होते हैं। जिन लोगों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrar७rg
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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