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________________ तो हम यहाँ हैं, खेल रहे हैं, आमोद-प्रमोद कर रहे हैं और चले जाएंगे। चले जाना तय है इसीलिए किसी से मोह नहीं करते, किसी धृतराष्ट्र की तरह मोह में अंधे नहीं होते। रिश्ते बनाते हैं पर याद रखते हैं कि रिश्ते ज़िंदगी के लिए होते हैं, ज़िंदगी रिश्तों के लिए नहीं होती। हमारा जीवन रिश्तों से ऊपर है, रिश्तों से महान है। रिश्ते मिठास भरे हों यह अच्छी बात है लेकिन इस मिठास से जिंदगी में खटास नहीं आनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो ये रिश्ते बेमानी हैं, बेकार हैं। ___ भगवान महावीर विशुद्ध रूप से मुक्ति के पक्षधर हैं। ये वे हैं जिन्होंने अपने जीवन में निर्वाण और मोक्ष को उपलब्ध किया। इसीलिए उन्होंने बोधपूर्वक अपनी नश्वर देह का त्याग किया था। अनासक्ति का फूल खिला तभी श्रीकृष्ण ने गीता में कहा- जब मृत्यु आती है तब योगी अपने शरीर को वैसे ही छोड़ देते हैं जैसे साँप केंचुली छोड़ देता है। वे देह से चिपके नहीं रहते। ___मैंने सुना है प्राचीन काल में ऐसे ऋषि, मुनि, महात्मा आदि होते थे जिन्हें अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो जाता था। यह भी सुना है कि कुछ संत, महंत, गृहस्थ भी श्मशान तक गए, अपने लिए लकड़ियों की व्यवस्था की और लोगों से कहा कि- आओ, मैं अपनी नश्वर काया का इतने बजे त्याग करूँगा। इससे पूर्व वे सबसे क्षमा-प्रार्थना करते हैं, नेत्र बंद करके समाधि लगाते हैं और समाधि में ही देह का त्याग कर देते हैं। ____ मैंने स्वयं ऐसे लोगों को देखा है। यहाँ निकट में (जोधपुर के पास) आसोतरा गाँव है। राजपुरोहितों ने वहाँ ब्रह्मा जी का एक विशाल मंदिर बनाया है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति ब्रह्मा जी का मंदिर बनवाता है उसे अपने शरीर का त्याग करना पड़ता है। राजपुरोहितों के गुरु ने घोषणा की थी कि- वे ब्रह्मा जी का मंदिर बनवा रहे हैं और जिस दिन ब्रह्मा जी की प्रतिष्ठा होगी उसी दिन प्रतिष्ठा होने के मात्र एक घंटे बाद वे अपने शरीर का त्याग कर देंगे। इस घोषणा को सुनकर बहुत लोग इकट्ठे हो गए। हज़ारों लोगों के सामने ही महाराज ने अपना चबूतरा बनवा लिया कि वहाँ उनकी समाधि बनेगी। जैसे ही प्रतिष्ठा हुई, वे चबूतरे पर आ गए और समाधि लगाकर बैठ गए और कहा- इतने बजकर इतने मिनिट इतने सेकेंड पर मैं अपने शरीर का त्याग करूँगा। उन्होंने समाधि लगा ली, लोग देख रहे हैं और ठीक समय देह त्याग दी। लोग देखते रह गए क्योंकि वे तो बैठे थे, बैठे ३२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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