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जाता है, पर सम्राट् की आँखें खुल जाती हैं। अगले दिन ही सम्राट् जंगल की ओर निकल जाता है।
___ अनासक्ति के फूल ऐसे खिलते हैं। अब मैं वह कहानी बताता हूँ जिससे मैं प्रभावित हुआ- वह कहानी एक माँ की है। माँ किसी समय राजरानी थी। वह संत बन गई थी। एक दफ़ा उसने अपने पुत्र को ख़त लिखा- बेटा, मुझे पता चला है कि इस समय तुम पढ़ाई कर रहे हो। क्योंकि तुम एक संत माँ के बेटे हो इसलिए उम्मीद है कि धर्मशास्त्रों को भी जरूर पढ़ोगे। लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि धर्मशास्त्र इतने अधिक हैं कि तुम बूढ़े हो जाओगे तब भी पूरे पढ़ न पाओगे। तुम्हारी साध्वी माँ तुम पर गौरव कर सके इसलिए एक सलाह देना चाहती हूँ कि तुम राजगद्दी पर बैठो उससे पहले राजमहल का त्याग करके किसी एकान्त स्थान पर चले जाओ, किसी मठ या मन्दिर में रहकर वहाँ कुछ समय बिताओ और अपने-आप को पढ़ने की कोशिश करो। शायद चौरासी लाख शास्त्रों को पढ़ना मुश्किल हो सकता है लेकिन स्वयं के शास्त्र को पढ़ना तुम्हारे लिए सुगम हो सकता है। तुम्हारी माँ तुम पर गौरव कर सकेगी, तब तुम राज्य-संचालन अनासक्ति की भावना के साथ कर सकोगे। ख़त के नीचे लिखा था - तुम्हारी माँ, जो न कभी जन्मी, न कभी मरी। Never born, Never died.
वर्षों वर्ष पहले मैंने यह खत पढ़ा और मुझे लगा कि मानो मेरी माँ ने मुझसे कहा हो- न जन्मी, न मरी- तुम सोचो अब तुम्हें क्या करना है। बहुत समय बीत गया जब मुझे उस खत को पढ़कर प्रेरणा मिली। अभी एक दार्शनिक चिंतक हए हैं- ओशो रजनीश! अपने निर्वाण से पहले उन्होंने भी अपने शिष्यों को बोध दिया होगा कि- ओशो, न कभी जन्मा, न मरा। इसीलिए उनकी समाधि पर एक ही लाइन लिखी गई- Osho, Never born, Never died- केवल इतने वर्ष से इतने वर्ष तक धरती पर रहे। - यह बहुत गहरा आध्यात्मिक ज्ञान है।
हम सभी को बोध रखना चाहिए हम सब यहाँ हैं लेकिन किसी सागर की लहर की तरह हम सब आते हैं, कुछ देर अस्तित्व रहता है और लहर की तरह पुनः अंत हो जाता है। जीवन में यह बोध सदा बना ही रहना चाहिए। हम अनासक्ति की बातें बहुत करते हैं लेकिन गले तक आसक्ति में डूबे हुए हैं। महावीर के सूत्र हमें अन्तर्बोध कराते हैं और अनासक्ति की ओर ले जाते हैं। अभी
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