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________________ उसका आधार ही यह होगा कि वह अपने जीवन के कार्यों को जागरूकतापूर्वक करे। अगर आलसी से पूछेंगे - खाना खा लिया या पानी पी लिया तो वह इतनी लापरवाही से ज़वाब देगा कि उसकी आवाज़ से भी आलस्य का बोध हो जाएगा। व्यक्ति की आवाज़ ही बता देती है कि वह कितना सक्रिय है, अपने कार्य के प्रति कितना दत्तचित्त है । अगर अर्जुन फिसल गया था तो भगवान ने क्या किया ? उन्होंने अपने फिसलते हुए शिष्य को, मित्र को वापस अपने कर्म के प्रति सन्नद्ध कर दिया । अप्रमाद-दशा लाने के लिए चित्त में आई हुई प्रमाद - दशा को छोड़ें, हीन - 9 -भावना, दुर्भावना, चिंता, आक्रोश जो चित्त में समाए हुए हैं इन्हें दूर करें । चिंता आक्रोश को दूर करने के लिए अपने चित्त को प्रसन्नता से, अहोभाव दशा से भरें, हर समय मुस्कुराने की आदत डालें । मुस्कुराता हुआ व्यक्ति प्रमादी नहीं कहलाएगा क्योंकि मुस्कुराने से ही उसके शरीर में विशेष प्रकार के द्रव्य का स्राव होता है और इससे उसके शरीर में ताज़गी आ जाती है, दिमाग स्फूर्ति से भर जाता है। अपने प्रमोद-भाव के लिए, प्रसन्न भाव के लिए कोई-न- - कोई बहाना ढूँढ़ लेना चाहिए । कुछ नहीं तो चुटकुले पढ़ लें, संगीत सुनें या जो भी रुचे वह करें। चलिए हम भी एक चुटकुला सुनते हैं - दो गंजे आपस में बात कर रहे थे कि गंजा होने का क्या लाभ है ? एक ने कहा - सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि कहीं जाना हो तो तैयार होने में अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती। कपड़े पहने, टाई लगाई और निकल गए। दूसरे ने फिर पूछा तो नुकसान क्या है ? पहले ने कहा- गंजा होने का नुकसान यह है कि जब मुँह धोते हैं तो पता ही नहीं चलता कि कहाँ तक धोना है। कुछ दिन पहले की बात है: तीन-चार महिलाएँ हमारे पास बैठी हुई थीं। एक ने कहा- मैं तो नियम की बड़ी पक्की हूँ। शाम को ७ बजे उनके आने का समय है अगर वो समय पर आ जाए तो उन्हें खिलाकर खाती हूँ, नहीं तो मैं तो अपने ७ बजे खा लेती हूँ। दूसरे ने कहा- मैं तो एक घंटा इंतजार करती हूँ, वो आएँ तो ठीक, नहीं तो मैं तो ८ बजे खा लेती हूँ। तीसरी ने कहा - मैं तो १० बजे तक उनकी इंतजार करती हूँ। चौथी जो दिखने में थोड़ी तेज थी, उसने कहा- मैं तो उनके आने के बाद ही खाना खाती हूँ चाहे रात के २ बज जाए। मैंने कहा Jain Education International For Personal & Private Use Only ३०७ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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