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________________ जब हिलेरी एवरेस्ट पर चढ़ने को तत्पर हुआ तो दो बार चढ़ा, पर दोनों बार असफल रहा। तब उससे पूछा गया कि दो बार असफल होने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है तो हिलेरी ने एवरेस्ट के चित्र को देखते हुए कहा - एवरेस्ट तुम जितने ऊँचे हो, तुम उतने ही ऊँचे रहोगे। तुम्हारी मज़बूरी है कि तुम एक फीट भी आगे नहीं बढ़ सकते, लेकिन मैं हिलेरी प्रयत्न करता रहूँगा और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम मेरे पाँव के नीचे होओगे और मैं तुमसे ऊपर होऊँगा । यह विश्वास ही व्यक्ति की सारी सफलताओं का जनक है । आत्म-निर्भरता का तत्त्व सभी के अन्दर हो । कोई भी व्यक्ति भीख न माँगे, कोई भी गरीब न हो । ज्यूस की दुकान खोल ले, सिलाई-कढ़ाई की दुकान खोल ले। न कुछ हो तो पत्थर तोड़ने की मेहनत कर ले, कुएँ में से पानी निकालने का श्रम कर ले। किसी भी बहाने आत्म-निर्भर हो जाए। यही तो है धर्म कि व्यक्ति अपने आपके बलबूते खड़ा हो जाए, खुद पर भरोसा जगाए। मैं तो मानता हूँ कि व्यक्ति की आत्मा ही उसका मूल तत्त्व है भले ही वह चौबीसों घंटे धर्म आराधना में न लगा रहे पर चौबीसों घंटे वह इस बात का बोध रखे कि शरीर और उसकी चेतना अलग-अलग हैं। शरीर एक दिन यहीं छूट जाएगा और उसकी चेतना मुक्त हो जाएगी । चेतना है तो शरीर धारण किया हुआ है। वह निकल गई तो मैटर फिनिश । जब व्यक्ति को प्रतिपल इस बात का बोध रहता है कि दोनों भिन्न-भिन्न हैं, जड़ और चेतन भिन्न हैं, शरीर और आत्मा दोनों भिन्न हैं तो वह जानता है कि संसार में संयोग है जो हम सब साथसाथ निभा रहे हैं। मैं आपके साथ और आप मेरे साथ नदी - नाव का संयोग है अन्यथा जीव तो अकेला आता है और अकेला ही चला जाता है । यह एकत्व का बोध ही अध्यात्म-निष्ठा है, भेद - विज्ञान है । ज्यों-ज्यों व्यक्ति आत्मतत्त्व के प्रति अन्तर्-दृष्टि को प्रगाढ़ करेगा त्यों-त्यों शरीर के भाव शिथिल होते जाएँगे। जब तक आत्म-भाव प्रगाढ़ नहीं होता है तब तक शरीर, इसके धर्म, इसकी प्रकृति, इसके गुण हम पर हावी हो जाते हैं। यह सबके लिए एकसमान हैं। एक दिव्य साध्वीजी हुई हैं विचक्षणश्रीजी । कहते हैं इन्हें कैंसर हो गया था । पर जिन्होंने उन साध्वीजी को देखा है, वे भली भाँति जानते हैं कि उनके स्तन-कैंसर में ज़बरदस्त पीड़ा थी, खून - मवाद बहता रहता था तब भी वे हर २९२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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