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प्रकाश अवतरित होने लगता है। जिसकी ऊँचाई छूने की कोशिश करो तो अन्तस में आकाश साकार होने लगता है । हम सब पृथ्वी के समान हैं तो महावीर पृथ्वी पर खड़े आकाश हैं। पृथ्वी और आकाश आपस में जुड़े होने के बावज़ूद आकाश पृथ्वी से कई गुना बड़ा है । इसलिए महावीर हमसे कई गुना ऊँचाई पर खड़े हैं। शरीर के धरातल पर देखा जाए तो हममें और महावीर में कोई फ़र्क़ नहीं है । नाम और संज्ञा में अधिक फ़र्क नहीं है। जन्म और युवावस्था, आहार, निद्रा, मैथुन आदि प्रवृत्तियों के आधार पर भी ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है, लेकिन जीवन की खि लावट में बेइन्तहा फ़र्क़ है । कोई फूल कली बनकर मुरझा गया, कोई फूल फूल की तरह खिल गया और कोई फूल स्वर्ण - कमल बन
गया।
महावीर स्वर्ण-कमल की तरह हैं । वे महान वैज्ञानिक हैं, परा - वैज्ञानिक हैं, गहन चिकित्सक हैं जो हम सब लोगों के रोगों को दूर करने का प्रयत्न कर रहे हैं। तभी तो कभी मीरा ने गाया था मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद वैद
सांवरिया होय ।
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जब प्रभु स्वयं चिकित्सक बनेंगे तभी हमारे मन की, आत्मा की पीड़ा मिट सकेगी। महावीर हमें अन्तरात्मा के आकाश में ले जाना चाहते हैं, हृदय के मंदिर में प्रवेश दिलाना चाहते हैं । वे चाहते हैं कि मानव अपने साधारण तल से ऊपर उठकर असाधारण तल का, असाधारण क्षमता का स्वामी बन सके 1 महावीर हम सबकी मुक्ति चाहते हैं। तभी तो वे हमारा नेतृत्व कर रहे हैं, कल्याण-मित्र, गुरु, सद्गुरु और तीर्थंकर की भूमिका अदा कर रहे हैं
जितना फ़र्क़ पृथ्वी और आकाश में है उतना ही फ़र्क़ हममें और महावीर में है। कल ही मैंने एक प्यारी सी कविता पढ़ी थी
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सुने हुए गीतों से मनहर, मधुर अनसुना गीत, आँखों देखे से सुन्दर अनदेखा मन का मीत । जिसके मन में जितना कम अनदेखे का अनुराग, उसके प्राणों में उतनी ही क्षीण हो चुकी आग । तन से मन की शक्ति अधिक है, प्रबल देह से प्राण, पृथ्वी से आकाश बड़ा है, जाने से अनजान ।
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