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________________ का ध्यान करने से सात्विक गुणों का आविर्भाव होता है । यह चित्त को रूपान्तरित करने का तरीका है। केवल चित्त के साक्षी हो जाने से ही कुछ न होगा, हमें चित्त का रूपान्तरण भी करना होगा। मिट्टी तो है ही, उसे दीये के रूप में रूपान्तरित करना होगा। पत्थर तो है लेकिन उसकी काट-छाँट कर हीरा बनाना होगा, प्रतिमा बनानी होगी। इसी तरह अन्तर्मन को, चित्त को रूपान्तरित करना होगा, बदलना होगा। जब हम अपने दिल में, अपनी आँखों में उसकी प्रार्थना करते हैं तो आँसुओं से भीगने लगते हैं। प्रभु में डुबकियाँ लगाने पर हमारा असंतुलित मन, हमारा अन्यमनस्क मन अपने आप ही एकलय होने लगता है। इस तरह प्रभु की प्रार्थना करना सबसे सरल धर्म है। ध्यान करने में सबका मन नहीं लग सकता। दो मिनिट भी व्यक्ति शांतचित्त होकर, अविचार की अवस्था में नहीं रह सकता। अभी मैं आपके साथ कुछ ज्ञानवार्ता कर रहा हूँ, बोल रहा हूँ तो आपको कुछ विषय मिल रहा है तो आपका चित्त रमा हुआ है लेकिन अगर मैं बोल नहीं रहा हूँ और एक घंटे तक यहाँ बैठना पड़ जाए तो... ? आप बेचैन हो जाएँगे, पाँच मिनट बाद ही आप इधर-उधर, ऊँचे-नीचे होने लगेंगे। सामायिक व्रत में तो प्रभु की प्रार्थना करनी ही चाहिए और अगर सामायिक नहीं करते हैं तो चौबीस घंटे में से चौबीस मिनट तो प्रभु-भक्ति, प्रभु-प्रार्थना करनी ही चाहिए। जब भी हम किसी बीमार को देखने जाएँ तो केवल उसका कुशलक्षेम ही न पूछे वरन् हाथ जोड़कर आँखें बंद करके दिल में प्रभु का ध्यान करें और उस रोगी को स्वस्थ होने की प्रार्थना करें। हमारे हृदय में, अन्तर्मन में प्रार्थना मूलक भाव होंगे, तो उससे रोगी अवश्य ही स्वास्थ्य-लाभ प्राप्त करेगा। जब हम प्रार्थना करते हैं - हे प्रभु सबको सन्मति दे, आरोग्य दे, आनन्द और ऐश्वर्य दे, सबका भला कर, सब पर दया कर और तेरा मीठा नाम मुख में निरंतर रहने दे, हे ईश्वर सबको सन्मति दे। - इस तरह की प्रार्थना और भावना से हमारे चित्त का आभामंडल, अन्तर्मन का, चेतना का आभामंडल अलग ही ऊर्जा से भर जाता है। एक अलग पॉज़िटिविटी से परिपूर्ण हो जाता है। मदर टेरेसा न केवल रोगियों की सेवा करती थीं बल्कि उनके लिए प्रार्थना भी किया करती थीं। मंदिर-मस्जिद में माइक लगाकर ये किस तरह की २५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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