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समत्व-भाव में स्थित हो रहा हूँ, आत्मभाव में स्थित हो रहा हूँ। और मन, वचन, काया के द्वारा समस्त प्रकार की हिंसा व दोषों का त्याग करते हुए समत्व-भाव ग्रहण कर रहा हूँ।' इस दौरान कुछ भी अच्छा या बुरा हो जाए कोई प्रतिक्रिया नहीं करें, अपने आराधना-भाव में स्थिर रहें। कहते हैं कि अगर कोई गृहस्थ अड़तालीस मिनिट पूरी तरह समत्व-भाव में स्थित रहता है तो एक सामायिक करने से व्यक्ति की सात नरक की गतियाँ टल जाया करती हैं - अगर वह मन, वचन, काया से करता है तो ! नहीं तो हालत यह होती है कि एक महानुभाव सामायिक कर रहे थे। एक दूसरे सज्जन आए और घर की बह से पूछा - बहूरानीजी घर में सेठ सा'ब हैं ? बहू ने कहा - अभी तो वे बाजार गए हैं (जबकि सेठ सामायिक कर रहा था) वह व्यक्ति सेठ को ढूँढ़ने बाजार में गया लेकिन थोड़ी देर बाद वापस आया और कहने लगा - वे बाजार में तो नहीं हैं, आखिर कहाँ गए हैं ? बहू ने कहा - अभी वे मोची की दूकान पर गए हैं। वह व्यक्ति मोची की दुकान पर जाकर लौट आया लेकिन सेठजी वहाँ भी नहीं मिले । बहू ने बताया - अभी वे धोबी के यहाँ गए हैं। वह व्यक्ति धोबी के यहाँ जाकर देख आया, आखिर हैं कहाँ ? बहू ने कहा - अभी वे सामायिक कर रहे हैं। अब वे सामायिक में हैं। थोड़ी देर बाद सेठजी की सामायिक पूरी हो गई, तिलमिलाए हुए बहू से कहने लगे - यह कौनसी बात है, मैं सामायिक कर रहा था, घर में ही था, तुम जानती भी थी, फिर भी कभी धोबी के यहाँ, कभी मोची के यहाँ तो कभी बाजार में भेज दिया। यह क्या तरीक़ा हुआ ?
बहू कहने लगी - पापाजी ! बुरा मत मानिए। सच्चाई यह है कि जब आप सामायिक में बैठे थे तब क्या आपके मन में बाजार में जाने के भाव नहीं उठे थे ? सामायिक करते हुए आपको जूतों की याद नहीं आई थी ? क्या आप यह विचार नहीं कर रहे थे कि सामायिक करने के बाद आपको स्नान करना है और धोबी के यहाँ से कपड़े लाने हैं ? सेठजी ने स्वीकार किया कि वे सामायिक करते-करते भी इन बातों को विस्मृत नहीं कर पाए लेकिन बहू बाहर रहकर भी सब बातें जान गई।
स्मरण रहे, ध्यान का अर्थ ही यह है कि हमारा मन व शरीर हमारे काबू में रहे। इसलिए सामायिक में बैठते ही अपने शरीर व दिमाग को अपने काबू में
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