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________________ आप चोरी करें। अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मेरे घर संदेशा भेज दिया करें, मैं आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर दूंगा। रहस्यमयी अंदाज़ से हँसते हुए संत ने कहा - न्यायाधीश, क्या तुम्हें ऐसा लगता है कि मेरे पास किसी चीज़ की कमी है जिसके कारण मैं चोरी कर रहा हूँ ? ऐसा नहीं है। मैंने चोरी चोरी करने के लिए की है। वह भी इसलिए कि मैं हवालात में आ सकूँ। और हवालात में इसलिए आ सकूँ कि यहाँ बंद पड़े कैदियों को वे संदेश सुना सकूँ जिन्हें सुनकर वे अपने बंधनों को नीचे गिरा सकें। ___ऐसा लगता है कि सारा जगत ही एक कारागार है। यहाँ हर इंसान बँधा हुआ है, हर प्राणी बँधा हुआ है और संत, ज्ञानी, महर्षि इंसानियत के बीच में आकर हर इंसान को उस संदेश का मालिक बनाना चाहते हैं जिसे पाकर वे अपने बंधनों को समझ सकें और उन्हें काट सकें । हर संत मुक्ति का पैगाम होता है, पवित्रता का पुरोधा होता है । वह मानवजाति के विकास, उसके आध्यात्मिक कल्याण की कामना और भावना से भरा होता है । संत का दायित्व ही यही होता है कि वह व्यक्ति को उसके बंधन समझाए और बंधनों से मुक्त होने का रास्ता दिखाए । यह कहानी तो एक प्रतीक है, हक़ीक़त में तो हम सभी कारागार में बँधे हुए हैं और इसमें महावीर जैसा महापुरुष संत का बाना पहने हुए आता है और हमें मुक्ति का मार्ग दिखाता है। जीसस की तरह, सुकरात की तरह महावीर भी आताप से मुक्त न हो सके । जीसस को सूली पर चढ़ना पड़ा, सुकरात को जहर पीना पड़ा, महावीर के कानों में कीलें ठोकी गईं। इतना सब होने के बावजूद भी वे हमारे अंतर के कारागार में चार कदम बढ़ाना चाहते हैं, ताकि वे हमें समझा सकें, बता सकें कि हमारे क्या-क्या बंधन हैं और उन बंधनों से मुक्त होने का रास्ता क्या है। जो कारागार में कैद हैं वही कैद नहीं हैं बल्कि आत्मज्ञानियों की अन्तर्दृष्टि उन्हें बोध कराती है कि धरती पर रहने वाला हर प्राणी किसी-न-किसी रूप में बँधा हुआ है। हम लोग किन्हीं लोहे की बेड़ियों से नहीं अपितु अपने आप से बँधे हुए हैं। ऐसा न समझें कि पति पत्नी से बँधा है, या पत्नी पति से बँधी है। कहते हैं मियां बीबी का गुलाम- हक़ीक़त में कोई किसी का गुलाम नहीं होता, व्यक्ति गुलाम होता है केवल स्वयं का, वह खुद ही बँधा रहता है। अग्नि की या २२५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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