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________________ मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, क्या मैं केवल एक माता-पिता की संतान हूँ या मेरा अन्य भी कोई स्वरूप है, क्या मैंने एक ही कोख से जन्म लिया है या बार-बार जन्मता और मरता रहा हूँ, क्या मैं किसी अज्ञात लोक से आया हूँ और क्या मरकर यहीं समाप्त हो जाऊँगा या कहीं और चला जाऊँगा?' व्यक्ति इन पर धैर्यपूर्वक विचार करे, चिंतन-मनन करे। ख़्याल रहे मनन से ही मार्ग मिलता है और चिंतन से चेतना जगती है। पुनः पुनः अध्यात्म का चिंतन करने से हमारी चेतना जाग्रत होती है और मन की प्रवृत्ति अध्यात्म की ओर बढ़ती है। पुनः पुनः मनन करने से ही हम मन से मुक्त हो सकते हैं वरना मन तो हमें पागल कर देगा। सम्यक् ज्ञान के लिए अच्छी पुस्तकें पढ़ें, अच्छे लोगों के सम्पर्क में रहें, अनुभवी लोगों का सत्संग करें। हम अपने भीतर जो भी ज्ञान अर्जित करना चाहते हैं उसका पहला चरण ठीक हो। दर्शन सम्यक होगा तो दूसरा चरण ज्ञान भी ठीक होगा। ज्ञान सम्यक होगा तो तीसरा चरण चारित्र भी ठीक होगा। तीसरा चरण यानी सम्यक् चारित्र अर्थात् सही-सही सुंदर-सुंदर करो। हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारा चरित्र है। महावीर कहते हैं - जो मोक्ष को उपलब्ध होना चाहता है उसका चरित्रवान होना ज़रूरी है। चरित्र तभी सही होगा जब दर्शन और ज्ञान सही होंगे। व्यक्ति को चरित्रवान बनाने के लिए, मुक्त मनुष्य का निर्माण करने के लिए ज़रूरी है कि ज्ञान और दृष्टि सम्यक् हो, पवित्र हो, निर्मल और परिपक्व हो। शेक्सपियर ने कहा है If wealth is lost nothing is lost. If health is lost something is lost. If character is lost everything is lost. यदि धन चला गया तो समझो कुछ भी नहीं गया, यदि स्वास्थ्य गया तो जानो कुछ गया, पर चरित्र की दौलत चली गई तो समझ लेना सब कुछ चला गया। जीवन में क्या सही है और क्या गलत इसका ज्ञान प्रायः हरेक को होता है। लेकिन कोई भी इस ज्ञान का अनुगमन नहीं करता है। हाँ, दूसरों को ज्ञान ज़रूर बाँटते रहते हैं - यह हमारी आदत हो गई है। बाप अपने बेटे को सलाह ज़रूर देगा, पर खुद शायद ही अमल करेगा। इस दुनिया में उपदेश देने वाले, बड़ी-बड़ी बातें करने वाले लोग अपनी बातों को खुद ही जीने लग जाएँ तो यह Jain Education International २०७ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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