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________________ मुक्त कर दिया है। एक मुक्ति वह है जो व्यक्ति को मरने के बाद उपलब्ध होती है लेकिन मरने के बाद क्या होगा उसके बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन जीते जी क्या होगा इसका मूल्यांकन तो कर ही सकते हैं। यह तो तय है कि मरने के बाद वही होगा जो जीते जी होगा। जैसे बच्चे ने साल भर पढ़ाई की है तो वैसे ही परीक्षा में परिणाम आएगा उसी तरह हम अगर जीते जी मुक्त हुए हैं तो मरने के बाद भी मुक्ति और मोक्षपद के मालिक बनेंगे। जीते जी राग-द्वेष, क्रोध-कषाय से मुक्त नहीं हो पाए तो मरने के बाद वही क्रोध-कषाय हमारा पीछा करेंगे। इसलिए व्यक्ति जीते जी अपनी मुक्ति का प्रबंध करे। महावीर मुक्ति-पथ के प्रवर्तक हैं, पुरोधा हैं। वे स्वयं मुक्त हुए, इसलिए मुक्ति की बात कर रहे हैं। महावीर के पिता से पूछा जाता तो वे बंधन की ही बात करते क्योंकि वे स्वयं बंधन में थे। उन्होंने तो महावीर को भी बंधन में डालने के लिए उनका विवाह तक करवा दिया। स्वयं बुद्ध और महावीर ने जो किया उसने उनकी शरण में आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए मुक्ति, आज़ादी, धर्म और अध्यात्म का रास्ता खोल दिया। यही वजह है कि भगवान बुद्ध बोधिलाभ को अर्जित कर मानव मात्र का कल्याण करने के लिए वापस शहर की ओर लौट आए। एक दिन विहार करते हुए वे अपने महल की ओर भी आते हैं, राजमहल में उन्हें अपनी पूर्व पत्नी यशोधरा भी मिलती है। वह उन्हें झिड़कती भी है - तुम तो चले गए, लेकिन अपना बेटा मेरे पास छोड़ गए। हर पिता अपने पुत्र को वसीयत में कुछ-न-कुछ देता है, तुम अपने पुत्र को वसीयत में क्या दे रहे हो ? तुम राजकुल में पैदा हुए, राजकुमार थे और भविष्य के राजा भी, पर तुमने अपने पुत्र के नाम क्या लिखा? यही प्रश्न अगर यशोधरा अपने ससुर से करती तो निश्चित ही ससुर द्वारा अपने पोते को राज्य मिलता। लेकिन प्रश्न बुद्ध से था तो ज़वाब में राहुल को भिक्षापात्र मिला। जिसके पास जो होगा वह वही तो लौटाएगा। जो स्वयं मुक्त हो गया वह दुनिया को मुक्ति का पैगाम देगा और जो बंधन में है वह बंधन का रास्ता ही दिखाएगा। हर व्यक्ति वही बोलेगा, वही करेगा, वही कहेगा जो उसका वर्तमान स्तर होगा। जो उसके जीवन का तौर-तरीका होगा, जिस पद पर, जिस मुकाम पर होगा लोगों को भी वहीं ले जाना चाहेगा। महावीर स्वयं १९६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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