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अम्बानी की तरह नहीं हैं। हम सब हारे हुए लोगों की तरह रोज नया गेम खेलना चाहते हैं, रोज नई लॉटरी खुलने का सपना सँजोते हैं। रोजाना ज्योतिषियों के चक्कर काट रहे हैं। रोजाना नीलम, पुखराज या मोती का रत्न पहनने को लालायित हैं कि कहीं-न-कहीं, किसी-न- - किसी तरह से हमारी गोटी फिट हो जाए। दुनिया चल रही है, हम भी चल रहे हैं क्योंकि ये सब इस किनारे की बातें हैं । उस किनारे की बातें हमको पता ही नहीं हैं। संत भी इस किनारे पर खड़े हैं और शास्त्र भी इस किनारे पर पड़े हैं । कथावाचक भी इस किनारे पर हैं। सारे भव्य समारोह भी इस किनारे पर हो रहे हैं, मंदिरों का निर्माण भी इसी किनारे पर हो रहा है। उस किनारे की सुगंध किसको आ रही है ? वहाँ के मंदिरों की घंटियाँ किसको सुनाई दे रही हैं ? उस किनारे की रोशनी किसको दिखाई दे रही है ? चाँद उधर भी है पर हम तो अपनी ही चाँदनी में मस्त हैं । महावीर की चाँदनी कौन देखेगा ? हमारी कहानी इस किनारे की है। जो प्रबल पराक्रमी होता है वही उस किनारे की तरफ़ बढ़ता है बाकी तो इसी किनारे पर उलझे रहते हैं ।
ऐसा हुआ । नारदजी विष्णु जी के पास पहुँचे और कहने लगे भगवानजी ! आप यहाँ बैकुंठ में बैठे हो, कभी-कभी धरती पर भी जाया करो । धरती पर लोग कितनी तक़लीफ़ में हैं। वे आपको पुकार रहे हैं, आपके पास आना चाहते हैं और आप हैं कि किसी की सुधबुध ही नहीं लेते। भगवान ने कहा मैं तो सबको अपने पास बुलाता हूँ, पर कोई आना ही नहीं चाहता, मैं क्या करूँ ? नारद जी बोले आप तो ऐसे ही मुझे बना रहे हैं। विष्णुजी ने कहा- ऐसी बात है तो तुम स्वयं धरती पर चले जाओ ।
नारदजी सचमुच धरती पर चले आए। एक गाँव के बाहर पहुँचे । वहाँ देखा कीचड़ में, गंदगी में एक सुअर पड़ा हुआ था। उन्हें लगा ये सुअर बड़े दुःखी हैं, विष्ठा खाते हैं, कीचड़ में पड़े रहते हैं, गंदा पानी पीते हैं। इससे ज़्यादा नारकीय जीवन तो कोई नहीं जीता होगा । इसी को सबसे पहले बैकुंठ में ले जाता हूँ। उन्होंने सुअर को आवाज़ लगाई सूअरराम ! सूअर ने ध्यान न दिया। चार-पाँच आवाज़ें दीं कभी सूअरचंद, कभी सूअरसिंह । सूअरसिंह सुनते ही सूअर का सिंहत्व जाग उठा कि उसे 'सिंह' किसने कह दिया । कीचड़ से नथुना बाहर निकालकर जोर से फूँ.. ...... किया। फूँ करते ही कीचड़ उछला
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