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भिखारी को बुरा तो बहुत लगा कि राजा भी कैसा था। खैर, वह गाँव भर में घूमा और भीख में कुछ चावल और इकट्ठे किए और साँझ पड़े घर लौट आया । घर पहुँचकर पत्नी से कहा - थोड़े से चावल हैं इन्हें ही साफ कर बीन लो और पका लो। पत्नी ने थाली में चावल जैसे ही बीनने के लिए डाले तो चकित रह गई क्योंकि उसमें एक चुटकी चावल के दाने सोने के थे। भागती हुई पति के पास गई और कहा - गलती से आपको किसी ने सोने के चावल दे दिये हैं। उसे याद आया कि ओह ! जो एक चुटकी चावल मैंने राजा को दान में दिये थे वही चावल सोने के बन गए। उसने पत्नी को पूरी कहानी सुनाई। पत्नी ने कहा - क्या ? राजा ने तुमसे माँगा वही चावल सोने के बन गए । अरे जाओ-जाओ और सारे चावल राजा को दे दो, ताकि बचे हुए चावल भी सोने के हो जाएँ। पति ने कहा - ऐसा कभी हुआ नहीं और कभी होगा नहीं कि राजा किसी भिखारी से कुछ माँगे। गाँव में जाने के बाद मैंने सुना है कि राजा को किसी ज्योतिषी ने सलाह दी थी कि तुम सुबह-सुबह राजमहल से निकल जाना
और जो पहला भिखारी दिखाई दे उससे माँग लेना। अगर वह तुम्हें दे दे तो समझ लेना कि तुम्हारा काम हो जाएगा और अगर न दे तो समझना कि तुम्हारा . काम अटक जाएगा। राजा निकला, उसने पहली बार माँगा, पर मैं ही कँजूसी कर गया। जितना मैंने दिया वह दुगना, चौगुना, दस गुना होकर सोने के चावल के रूप में मेरे पास लौट आया।
जितना देंगे, भगवान के घर से लौटकर तो ज़रूर आता है। तय है कि जो बबूल के बीज बोता है उसे बबूल के पेड़ मिलते हैं और जो आम के बीज बोता है उसे आम के फल मिलते हैं। हम जो बोएँगे वही लौटकर आएगा।
भगवान महावीर ने धर्म का यह जो स्वरूप दिया है संत का और गृहस्थ का उस पर थोड़ी-सी चर्चा की है, थोड़ा-सा समझा है। पुनः एक बार फिर उनके अमृत वचनों का आनन्द लेंगे। और अपने जीवन को अधिक खुशहाल, अधिक पवित्र और अधिक धर्ममय बनाने का प्रयत्न करेंगे।
सभी को अमृत प्रेम और नमस्कार ।
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