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________________ मंज़िल तक ले जाता है। महावीर ने भी तो पत्नी को छोड़ा था, बच्ची का त्याग किया था, राजमहलों का त्याग किया था, बुद्ध ने भी ऐसा ही किया था आखिर किस वज़ह से ? राम भी तो वनवास में रहे । किस कारण ? धर्म के लिए । इसीलिए धर्म का महत्त्व बढ़ गया । धर्म का महत्त्व बढ़ने से व्यक्ति चार क़दम आगे चल जाता है। 1 किसी भी इंसान को अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपनी नींव मज़बूत कर लेनी चाहिए । अगर नींव मज़बूत नहीं है तो मकान बनाने के लिए रखी गई दस ईंटें कभी भी गिर सकती हैं। हर इंसान अपने जीवन के भवन की नींव ठीक ढंग से रख सके, नींव मज़बूत बना सके इसके लिए भगवान महावीर ने अपनी अमृतवाणी के ज़रिये धर्म के संदेश दिये हैं, धर्म का व्याख्यान किया है। महावीर ने धर्म के दो चरण बताए हैं - एक गृहस्थों के लिए, दूसरे जो गृहस्थी का त्याग कर, सांसारिक रसरंग को छोड़कर संत बन चुके हैं। इस तरह एक धर्म होता है संसारी लोगों के लिए और एक धर्म होता है संन्यासी लोगों के लिए । धर्म दोनों के लिए है, पर गृहस्थ और संसारी व्यक्ति के लिए धर्म थोड़ा सरल होता है और संन्यासी का धर्म पूर्ण होता है, कठिन नहीं होता । यह न समझें कि संत का धर्म कठिन होता है। उसे केवल पूर्णता देने की बात है। गृहस्थ में रहने वाला व्यक्ति उसे आंशिक रूप में जीता है, पर संन्यास लेने वाला व्यक्ति उस धर्म को पूर्णता के साथ जीने का प्रयत्न करता है। गृहस्थी में तो प्रायः सभी होते हैं, लेकिन गृहस्थ-धर्म को निभाना नींव मज़बूत करने के समान है। अगर व्यक्ति संन्यास लेना चाहता है तो वह तभी संन्यास को सही ढंग से जी पाएगा जिसने गृहस्थ-धर्म को सही ढंग से जिया है । हर व्यक्ति एकदम से वाल्मीकि नहीं बन सकता। हर व्यक्ति पत्नी की डाँट सुनकर तुलसीदास नहीं बन सकता । यह सब आम आदमी के लिए नहीं हो सकता। आम आदमी को तो एक सिस्टम देना ही होगा । व्यक्ति पहले गृहस्थजीवन में रहकर स्वयं को मजबूत कर ले। धर्म के साथ स्वयं को जोड़ ले। अगर गृहस्थ धर्म को पूर्णता के साथ, परिपक्वता के साथ जीने का प्रयत्न करेगा तो वह संन्यास लेने के बाद संन्यासी जीवन को भी पूर्णता के साथ, शुद्धता के साथ जी सकेगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only १३३ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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