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________________ दूसरे की जवानी अपनी जवानी, दूसरे का रोग अपना रोग, हर किसी की पीड़ा अपनी पीड़ा और दूसरे का बुढ़ापा अपना बुढ़ापा लगता है। जब सचेतन और आत्म-जागरूक व्यक्ति किसी अर्थी को निकलते हुए देखता है तो वह जीवन के बहुत सारे अर्थ निकाल लिया करता है। साधक व्यक्ति अगर ठोकर खाता है तो यह ठोकर भी उसे आत्म-जागृत करती है। आत्म-साधक दूसरे की जलती हुई चिता को देखकर अपनी चेतना को जगा लेता है। वह व्यक्ति किस काम का जो दूसरे की चिता को देखकर अपनी चेतना न जगा पाए, दूसरे की अस्थियों को बिखरता देखकर अपनी आस्था न जगा पाए । ज़िन्दे और मुर्दे में यही फ़र्क है कि जिन्दा जग सकता है और मुर्दा केवल सोया रहता है। जो व्यक्ति घटी हुई घटना को देखकर अपने भीतर किसी भी बोध की किरण नहीं उतार पाता ऐसा व्यक्ति मरा हुआ है। भगवान कृष्ण ने कभी अर्जुन से कहा था कि सामने खड़े हुए जिन लोगों को तुम अपना भाई, काका, मामा, पितामह समझते हो, लेकिन यदि वे धर्म का पथ छोड़ चुके हैं तो वे लोग मर ही चुके हैं और मरे हुए को नीचे गिराना पाप नहीं है। वे भाग्यहीन हैं जो सोए रहते हैं। सौभाग्यशाली होते हैं वे जो जाग जाते हैं। उगता सूरज हमें जगाता है और डूबता सूरज सुला देता है। ज़िंदगी में भी हम इसी तरह सोते और जागते हैं। जिसने समझ लिया कि 'नानक दुखिया सब संसार' - वे लोग जग जाया करते हैं और जो जग जाते हैं उन्हीं के लिए महावीर, बुद्ध, राम, रहीम और नानक का मार्ग सार्थक होता है। मार्ग की सार्थकता आत्म-जागृत लोगों के लिए ही है। श्री अरविंद ने एक अच्छा शब्द प्रयोग किया है - अभीप्सा, प्यास – कि जिसे बुझाए बगैर चैन ही न मिले । जब ऐसी तड़फन पैदा होती है तो जिनेन्द्र का, जितेन्द्र करने वाला मार्ग सार्थक होता है। आज से हम जिस मार्ग की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, जिस समुद्र-तट पर चहलकदमी करने जा रहे हैं उसके प्रति सावधान रहें क्योंकि रास्ते में ज्वार-भाटे भी आएँगे और अपने ही भीतर के घेरे हमें घेरेंगे । मुमकिन है चलते-चलते हमें भी कोई प्रज्ञा की पतवार, जीवन की ऐसी नौका मिल जाए जो हमें इस किनारे से उस किनारे पहुँचाने में मददगार हो जाए। पता नहीं चलता कब कौन हमारा माँझी बन जाए। साधारण-सा दिखने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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