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________________ यात्रा करते हैं तब ही उस पार के दृश्यों का आनन्द उठा सकते हैं । तलहटी पर रहकर हिमालय के शिखर को नहीं छुआ जा सकता। इसके लिए हिमालय की यात्रा करनी होती है । जीवन में अध्यात्म की हिलोर तब ही उठती है जब इंसान के जीवन में दो चीजें एक साथ मुखरित होती हैं - एक ओर बुद्ध का बोध, दूसरी ओर महावीर का मौन । हाँ, इसमें अगर मीरा का इकतारा भी जुड़ जाए, तो क्या कहना ! जहाँ 1 - बुद्ध का बोध, महावीर का मौन, मीरा का इकतारा, सूर का करताल और चैतन्य महाप्रभु का अहोनृत्य - ये सब चीजें एक साथ मिलती हैं वहीं जीवन का सच्चा आनन्द और महोत्सव होता है। दुनिया में महोत्सव दो घड़ी में बनते हैं और दो घड़ी में मिट भी जाते हैं । जब कोई अपना जन्म दिन, शादी की सालगिरह या अन्य कोई उत्सव मनाता है तो उसकी खुशियाँ अवश्य ही सिर चढ़कर बोलती हैं लेकिन तभी तक जब तक प्लेटों में सामान सजा हुआ है । लेकिन बिखरी हुई प्लेटों और टूटे हुए साजो-सामान को जब देखा जाता है तो महसूस होता हैहमारी ख़ुशी पल में पैदा होती है और पल में बिखर जाती है जैसे पौधों पर पल में गुलाब खिलता है और पल में बिखरने लगता है। पल-पल में खिलने और बिखरने वाला तत्त्व ही अगर ग़म और ख़ुशी है तो इंसान ग़म और ख़ुशी की तराज़ू पर तुलता रहेगा । तब कभी एक पलड़ा भारी तो कभी दूसरा पलड़ा भारी । हमने बचपन में गीत है सुना सुख-दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव । कभी धूप तो कभी छाँव । जिन लोगों की समझ सामान्य है, वे केवल इसी किनारे का आनन्द लेते रह जाते हैं, उनके लिए कभी धूप है, कभी छाँव । लेकिन जिसने महावीर जैसी अन्तर्दृष्टि प्राप्त कर ली, पतंजलि की योगदृष्टि को उपलब्ध कर लिया, बुद्ध जैसी बोध - दृष्टि को अख़्तियार कर लिया उनके लिए संसार एक आँख मिचौनी का खेल है। वे संसार को आँख खोलकर धैर्यपूर्वक समझते हैं, जीवन में घटित होने वाली हर घटना, जन्म, यौवन, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु होने पर निकलने वाली अर्थी को भी समझते हैं । उन्हें नहीं लगता कि दूसरे की मृत्यु हुई है, उन्हें तो वह मृत्यु भी खुद की मृत्यु लगा करती है। किसी दूसरे का जन्म अपना जन्म, Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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