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शुभ सोचोगे तो शुभ-शुभ बोलोगे। शुभ-शुभ बोलोगे तो शुभ-शुभ करोगे। शुभ लाभ होगा तो शुभ खर्च भी होगा। लाभ ही अगर खोटा है तो फिर शुभ खर्च कहाँ से हो जाएगा। इसलिए इधर भी शुभ, उधर भी शुभ । खर्चा भी शुभ करो, लाभ भी शुभ करो। येन-केन-प्रकारेण पैसा तो इकट्ठा हो जाएगा। सुख-सुविधाएँ, ऐशो-आराम के साधन भी हाज़िर हो जायेंगे लेकिन कर्मों का ऐसा उदय आता है कि छप्पन भोग भी सामने हों, पर डॉक्टर ने कह दिया कि जौ का रस पीने को मिलेगा। इसके अतिरिक्त और कुछ पी लिया तो तबियत बिगड़ जाएगी। सबसे महंगी कार दरवाजे पर खड़ी हो, लेकिन जाएँ कैसे ? शरीर को लकवा हो गया है। खरा-खोटा करके पैसा तो इकट्ठा किया जा सकता है, पर उपभोग भी हो सके इसके लिए शुभ कर्म चाहिए । इन्होंने शुभ लाभ नहीं किया, शुभ खर्च नहीं किया। केवल लाभ ही लाभ किया, खर्च ही खर्च किया - उसके साथ शुभ नहीं जोड़ा । अब बताइये इन रईसों में और झोपड़ियों में रहने वालों में क्या फ़र्क हुआ? वे भी जौ की रोटी खा रहे हैं। ये भी उसी का रस पी रहे हैं। झोपड़ी में रहने वाला फिर भी सब्जी में तेल, मिर्च-मसाला डालता होगा पर बँगलों में रहने वालों का मिर्च-मसाला छूट गया, तेल-घी पर पाबन्दी लग गई। चौबीस घंटे में एक चम्मच तेल-घी, दूध भी मलाई उतारकर, अब बताएँ लाभ के नाम पर तो खूब लाभ हुआ मगर वह अपने आपसे दुःखी हो गया। हम सब अपने आपसे दुःखी हैं।
मैं तो खूब आनन्द लेता हूँ, खुद शहंशाह हूँ। कहते हैं पहले राजा-महाराजा खूब मजे मारते थे पर मैं तो आज भी राजा-महाराजा हूँ क्योंकि मन की इच्छाएँ ही नहीं हैं। तृप्त हूँ खूब । जो तृप्त होता है वह शहंशाह होता है। कहते हैं न् चाह गई चिंता मिटी मनुवा बेपरवाह ; जिनको कछु न चाहिए सो शाहन के शाह । वो शहंशाह हैं जो परितृप्त हैं। लोग पैसे में सुख मानते हैं, पर पैसे में सुख कहाँ ! सुख के बीज बोने हैं तो एक हाथ में शुभ लाभ भी रखो, दूसरी ओर शुभ खर्च भी लिखो। मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि हमेशा लाभ पर ध्यान देना, पर लाभ शुभ हो इस पर ज़रूर गौर करना । अगर लगे कि आज का लाभ अशुभ हो गया - जैसे कि व्यापार में कोई गलती से आपको अधिक धन दे गया और आप उसे जानते भी नहीं हैं, फोन नम्बर, पता आदि भी कुछ नहीं है कि वापस लौटा सकें
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