SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुरुष अगर प्रभावी हो जाए तो व्यक्ति अध्यात्म को उपलब्ध कर लेता है और प्रकृति प्रभावी हो जाए तो व्यक्ति देहपिंड से हार जाता है। इसलिए जब ध्यान करते हैं तो अपने आपको जीतते हैं, अपने देह-पिंड को जीतने का प्रयत्न करते हैं, देह पिंड को जीतने का अभ्यास करते हैं। पौन घंटा जो ध्यान में बैठे हैं इसमें अपने पिंड को, मन को, विकारों को, अज्ञान को, कषायों को, उत्तेजनाओं को, वैर-विरोध की भावनाओं को - इसकी ग्रंथियों को, इन्द्रियों के गुणधर्मों को जीतने का अभ्यास करते हैं। यह अभ्यास है, इसका अर्थ यह नहीं है कि जीत ही गए। ध्यान में अभ्यास किया, अब व्यवहारिक जीवन में जब निमित्त मिलेंगे तब पता चलेगा कि हम जीत पाए या नहीं जीत पाए। आनन्द-आसन करते हुए देह को विश्राम दे रहे थे, अब विश्राम मिला या नहीं मिला यह तो खड़े होने के बाद ही पता चलेगा कि तनाव है या तनाव मिट चुका है। बच्चा स्कूल जाता है तो ऐसा नहीं कि स्कूल जाते ही एम.ए. पास हो गया। वह स्कूल जा रहा है, कोशिश कर रहा है, अभ्यास कर रहा है, धीरेधीरे आगे बढ़ रहा है, अभ्यास करते-करते परीक्षा में पास भी हो जाएगा ऐसी उम्मीद करते हैं। पास हो ही जाएगा इसकी कोई गारण्टी तो है नहीं। हम ध्यान करते हुए अपने क्रोध को शांत करने का प्रयास कर रहे हैं, समझ रहे हैं कि क्रोध बुरा है, क्रोध के दुष्परिणाम भी जानते हैं और समझते हैं कि अब क्रोध नहीं करेंगे। पर इसका अर्थ यह तो नहीं है कि क्रोध करेंगे ही नहीं। समझ रहे हैं, धीरे-धीरे कोशिश कर रहे हैं. चित्त में समता घटित करने का प्रयत्न कर रहे हैं, अभ्यास कर रहे हैं। अब कोई संत बन गया, संन्यास ले लिया तो कोई खुदा या भगवान तो नहीं बन गया। है तो वह भी इन्सान ही। संत बन गया तो अब वह स्वयं को शांत करने का अभ्यास कर रहा है। संत में और सामान्यजन में अधिक फ़र्क नहीं है। दो-चार कदम आगे-पीछे का फ़र्क होगा। आप अभी अभ्यास करना शुरू कर रहे होंगे। वह अभ्यास कर रहा होगा। जिस दिन उसका अभ्यास पूरा हो जाएगा वह पास हो ही जाएगा। उस दिन केवल बोधि, केवलज्ञान, निर्वाण शांतम् की स्थिति उसे उपलब्ध हो जाएगी। हम सब इसीलिए अभ्यास कर रहे हैं, प्रयत्न कर रहे हैं। और प्रयास ज़रूर रंग लाते हैं। मन की भाव-धाराएँ शुभ हों, हृदय की भाव-धाराएँ शुभ हों। शुभ १२२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy