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________________ रहता तो एक ही मकान में है लेकिन मन में कइयों की जमीन हड़पने की कोशिश कर लेता है। मन के भाव ही पाप या पुण्य हैं। शुभ-भाव होने पर विचार भी शुभ होंगे, विचारों के शुभ होने पर वाणी भी मंगलमय और शुभ होगी, वाणी के मंगलमय और शुभ होने पर व्यवहार भी शुभ और प्रीतिकर होगा, व्यवहार शुभ और प्रीतिकर होने से हमारा जीवन, हमारा आचरण, चरित्र संबंधी सभी चीजें शुभ और मंगलमय होंगी । जीवन को शुभ करने के लिए सोच और भावनाओं को शुभ करना ज़रूरी है। कहते हैं - जंगल से एक व्यक्ति जा रहा था, भूख लगी। उसने देखा पेड़ पर फल और फूल तो हैं नहीं, सोचा पत्ते खाकर ही पेट भर लिया जाए। पत्ते तोड़े और खाए तो जाना कि पत्ते कड़वे हैं, उसने तुरंत थूक दिया और सोचा चूँकि पत्ते कड़वे हैं इसलिए सारे पत्तों को काट दिया जाए और पत्ते काट डाले। तब सोचा डाली तो मीठी होगी उसे ही चूस लें, पर डाल भी कड़वी निकली। अब तो उसने सारी डालियाँ, टहनियाँ भी काट दी और तने को चूसकर भूख शांत करनी चाही पर तना भी कड़वा ही निकला। वह समझ न पाया कि यह कसैलापन कहाँ से आ रहा है। मैं भी उसी रास्ते से जा रहा था, वह राहगीर मुझे मिला, उसने मुझे बताया कि उसने पत्ते भी तोड़े, डालियाँ, तना सभी तोड़े पर सबके सब ही कड़वे निकले । वह मुझसे इस कड़वेपन का राज जानना चाहता था। मैंने कहा - क्या तुम मुझे वह वृक्ष बताओगे? वह मुझे उस वृक्ष के पास ले गया और पत्ते, डाल व तना दिखाया। मैंने कहा - तुमने बाहर की कड़वाहट को तो समझा लेकिन ध्यान रहे जीवन में कोई भी कड़वाहट बाहर बाद में, जड़ों में पहले आती है। क्योंकि बीज ही कड़वा था इसलिए इसकी जड़ें ही कड़वी हो गईं फलस्वरूप तना, डालियाँ, पत्ते सभी कुछ कड़वे निकले। हम भी अगर अपनी भावनाओं में कड़वे बीज बोएँगे तो विचार, वाणी, व्यवहार सब कुछ कड़वे होते जाएँगे। वहीं भावों को शुभ रखने पर हमारा आभामंडल भी निर्मल और प्रभावशाली होगा, हमारे वाणी-व्यवहार भी प्रभावशाली होंगे। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपनी भाव-दशाओं को सदा बेहतर रखें। मेरा मत है कि एक बहू और एक सास एक-दूसरे के प्रति शुभ-भाव रखती हैं तो यही पुण्य है। केवल दान देना, धर्मशाला बनवाना, कुएँ खुदवाना Jain Education International For Personal & Private Use Only ११७ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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