SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न बल्कि किसी तरह का संकल्प भी नहीं करता । राग और द्वेष से मुक्त होने के लिए ज़रूरी है कि व्यक्ति सहज जीवन जीए। मैं तो कहूँगा आनन्द से, प्रेम से ओ। न राग से जीओ न द्वेष से जीओ प्रेम से जीओ। न झगड़ा करके, वैर-विरोध करके अपितु आनन्द से जीओ । हम सभी की जिंदगी बहुत जल्दी समाप्त हो जाने वाली है। इसलिए जितना भी जीवन है आनन्द से जी लें। जितनी ज़िंदगी है उसे राग-द्वेष से मुक्त होकर जिएँ । आप स्वयं अच्छे हैं इसलिए तारीफ़ कर रहे हो, दूसरे को बुराई दे रहे हो तो तुम बुरे हो इसलिए बुरा कह रहे हो। तारीफ़ में बुराई में निरपेक्ष रहना, यही साधना है । मन जो घड़ी के पेंडुलम की तरह है इधर-उधर डोल रहा है वह बीच में स्थिर हो जाए, इसी का नाम साधना है । सहजता से अपना जीवन जीओ । - राग-द्वेष से ऊपर उठ सकें इसके लिए सबसे पहले स्वयं पर संयम रखें और दूसरों के साथ प्रेम करें। दूसरों से प्रेम रखेंगे तो द्वेष नहीं बनेगा और स्वयं पर संयम रखेंगे तो राग नहीं होगा । तप-त्याग करना स्वयं पर किया जाने वाला संयम है। अपने राग-द्वेष की कसौटी करते रहना चाहिए कि समता-भाव आया या अभी भी चित्त में विषमता है । सभी लोग पंच महाव्रत तो धारण नहीं कर सकते लेकिन छोटे-छोटे व्रत तो धारण किए ही जा सकते हैं जैसे कि एक माह में पाँच या चार सप्ताह माने जाएँ तो एक सप्ताह तक अहिंसा को पूरी तरह जीएँ with perfectness. दूसरे सप्ताह में सत्यव्रत को जीएँ परिपूर्णता के साथ, तीसरे सप्ताह में संकल्प लें कि अचौर्य व्रत को जीएँगे, चौथे सप्ताह में शीलव्रत का पालन करें और पाँचवें सप्ताह में नए क्रय-विक्रय से बचें। यह हो गया सरलीकरण । जैसा कि संकल्प है पहले सप्ताह में अहिंसाव्रत के पालन का तो किसी को कठोर वाणी नहीं बोलेंगे, क्रोध नहीं करेंगे। अगर कुछ विपरीत वातावरण बन भी जाए तो संयम रखें, बार-बार ख़याल में लें कि यह अहिंसा-सप्ताह के व्रत का समय है इसलिए विपरीत स्थितियों की उपेक्षा करें । इसके उपरान्त भी अगर सामने वाला सुनने को तैयार न हो तो उसे प्रेम से बता दें कि आपका अहिंसा-सप्ताह चल रहा है, इसलिए जो कहना-सुनना हो अगले सप्ताह बात करेंगे। अगला सप्ताह अगर सत्य का है तो किसी भी स्थिति में हम झूठ नहीं बोलेंगे। सत्य को परिपूर्णता के साथ जीएँगे । आयकर - बिक्रीकर के ९४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy