SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो जो अच्छे से फूला हुआ हो, ठीक ढंग से सिका हो, नरम हो वही अच्छा लगता है। यही राग का कारण बनता है और जो फुलका कच्चा, जला हुआ, पिचका-सा हो तो वही फुलका हमारे चित्त में द्वेष के संकल्प-विकल्प पैदा कर देता है। बनाने वाला वही है, आटा भी वही है लेकिन संकल्प-विकल्प के कारण राग-द्वेष हो जाता है। यही राग-द्वेष हमें बाँधते और मुक्त करते हैं, अन्य कुछ भी न बाँधता है न मुक्त करता है। ऐसा नहीं है कि कोई जमीकंद खाता है तो नर्क में ही जाएगा और न खानेवाला गारंटी के साथ स्वर्ग में ही जाएगा। जमीकंद नहीं खाकर स्वर्ग का रास्ता खोल सकते हो पर क्रोध करके तो ज़रूर ही नरक में जाओगे। संकल्प-विकल्प ही बाँधते हैं। संसार की वज़ह, दुःख की वज़ह, कर्मों के अनुबंध बाँधने की वजह हमारे संकल्प-विकल्प होते हैं। एक योगी जंगल में एक पाँव पर, एक हाथ ऊँचा करके दीर्घ तपस्या कर रहा था। वहाँ से किसी राजा की सवारी निकली। राजा उसकी प्रशंसा करने लगा कि - यह योगी धन्य है जो इस तरह जंगल में खड़ा होकर स्वयं को तपा रहा है। वह अनुमोदना करते हुए आगे बढ़ जाता है। जब राजा तारीफ़ कर रहा था उस समय अगर योगी की मनोदशा को समझा जाता तो पता चलता कि वह योग की है या रोग की। कहानी बताती है कि राजा से पहले उसके अंगरक्षक गए तो एक ने दूसरे से कहा - अरे, धन्य हैं ये महाराज जो अपने आपको साध रहे हैं। दूसरे ने कहा - क्या धन्य हैं, ये महाराज तो पाखंडी हैं। इन्हें नहीं पता कि इनके छोटे बच्चे को जिसके भरोसे इन्होंने राजगद्दी छोड़ी है उसे षड्यंत्र के साथ दो दिन में मारा जाने वाला है। मंत्री ने बगावत कर दी है, सेनापति ने भी बगावत कर दी है और दो दिन में उसका अंत हो जाएगा। एक ने प्रशंसा की तो मन में राग के भाव जगे, दूसरे ने आलोचना की तो द्वेष के भाव पैदा हुए। संकल्प-विकल्प मन में चलने लग गए। जब राजा ने उनकी अभिवंदना की थी तब उनके मन के आधार पर अगर यमराज को निर्णय देना होता तो वह यही कहता कि यह योगी मरकर नरक में जाएगा; क्योंकि मन के भाव दूषित हो गए। ____ महावीर की विशेषता थी कि वे न केवल विकल्प-मुक्त थे, निर्विकल्प थे वरन् वे संकल्पों से भी मुक्त थे। वीतराग व्यक्ति विकल्प ही नहीं करता ९३ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy