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सार्थक और आनंद-भाव से जीकर जाओ। बुढ़ापे को लेकर रोओ मत, बुढ़ापे को सार्थक करो। ज़्यादा लफड़ों में हाथ मत डालो। कुछ ऐसा करो कि बुढ़ापा धन्य हो।
हमारा बुढ़ापा स्वस्थ भी हो, सार्थक भी हो, सुरक्षित भी हो और औरों के लिए आदर्श भी हो, यह निहायत ज़रूरी है। बुढ़ापे में हमें किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसकी तैयारी अभी से कर लो। अपन नब्बे वर्ष की उम्र में भी युवा रह सकते हैं बशर्ते संयमित जीवन जिएँ। संतुलित आहार, उचित व्यायाम और प्रात:कालीन भ्रमण करते हुए आप हर आयु में स्वस्थ एवं युवा बने रह सकते हैं। मन कभी बूढ़ा नहीं होता। स्वयं को बूढ़ा मानना छोड़ दो। जब तक जीएँगे ऊर्जा के साथ जीएँगे। जीवन के अंतिम क्षण तक ऊर्जा, उत्साह और उमंग बनाए रखेंगे। जो ऐसा नहीं जी पाते हैं उन्हें ही बुढ़ापे की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
बुढ़ापे में सबसे पहली समस्या शारीरिक होती है। स्मरण-शक्ति कम हो जाती है, दृष्टि कमज़ोर हो जाती है, श्रवण-क्षमता भी कम हो जाती है, दाँत गिरने लगते हैं, चमड़ी में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं, बोलना चाहें तो ठीक से बोला न जाए, रक्तचाप असामान्य रहने लगता है, साँस फूलने लगती है। पाचनक्षमता घट जाती है। कमर भी झुकने लगती है, हाथ में लाठी आ जाती है, घुटने दर्द करने लगते हैं। बहुत प्रकार की बीमारियाँ घर करने लगती हैं।
दूसरी समस्या मानसिक होती है। बूढ़े व्यक्ति की चाह बढ़ती जाती है। चिंताएँ और चिड़चिड़ाहट भी बढ़ने लगती है। वह छोटी-से-छोटी चीज़ भी समेटने लगता है कि काम आएगी। उन्हें चिंता सताती है कि जब वे बूढ़े हो जाएँगे तो उन्हें कौन संभालेगा! उनके हाथ-पाँव नहीं चलेंगे तो कौन उनकी देखभाल करेगा! आज के युग की संतानों से माता-पिता का विश्वास उठ गया है। चिंता क्यों करते हो? पशु-पक्षियों की सेवा कौन करता है? हाँ, अगर तुम्हारी सेवा हो जाए तो समझ लेना पुण्याई अभी तक बची हुई है। बूढ़े लोग कोई-न-कोई चिंता अवश्य पालकर रखते हैं। कुछ नहीं तो यही फ़िक्र कि अगर वे बीमार हो गए तो उनकी सेवा, चिकित्सा ठीक से होगी या नहीं, चिकित्सा हो जाए तो ठीक, न हो पाए तो फ़िक्र कैसी? क्योंकि प्रकृति का नियम है कि हर हरा पत्ता पीला पड़ता है और फिर झड़ जाता है। जन्म के
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