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________________ अकबर राजसभा में बैठे हुए थे कि बोले-आज बहुत बुरा हो गया, मैं सुबह आम और तरबूज काट रहा था कि अँगुली में चाकू लग गया और खून निकल गया, अरे अँगुली ही कट गई। दरबारियों ने कहा-बहुत ही बुरा हो गया, महाराज! बीरबल चुप ही रहा तो अकबर ने पूछा-बीरबल, तुमने कुछ नहीं कहा। बीरबल ने कहा-महाराज, मैं क्या कहूँ? मैं तो इतना ही जानता हूँ कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। बादशाह ने कहा-क्या? यहाँ तो मेरी अँगुली कट गई, दर्द के मारे छटपटा रहा हूँ और तुम कह रहे हो यह अच्छे के लिए हुआ, 'महाराज, मैं इस बारे में क्या कहूँ, मैंने तो अभी तक यही जाना है कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,' बीरबल ने कहा। सम्राट क्रोधित हो गया और उसे कारागार में डालने का हुक्म दे दिया। कुछ दिन बीत गए। अकबर अपने अंगरक्षकों के साथ शिकार पर गया। वह अपने साथियों से आगे निकल गया कि वहाँ उसे आदिवासियों ने घेर लिया और पकड़कर अपने राजपुरोहित के पास ले गए क्योंकि उन्हें बत्तीस लक्षणोंयुक्त किसी भद्र इंसान की बलि अपनी कुलदेवी के समक्ष देनी थी। राजपुरोहित ने अकबर का पूरा परीक्षण किया तो पता चला कि उसकी एक अँगुली कटी हुई है। राजपुरोहित ने आदिवासियों से कहा कि यह व्यक्ति बलि के योग्य नहीं है। क्योंकि इसकी एक अँगुली कटी हुई है। सम्राट को छोड़ दिया गया। बादशाह को याद आया कि बीरबल ने ठीक ही कहा था कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। बादशाह वापस नगर में पहुँचा और बंदीगृह में कैद बीरबल को मुक्त कर दिया। लेकिन पूछा-बीरबल, मेरे संदर्भ में तो यह अच्छा हुआ कि मेरी अंगुली कटी थी और मेरी बलि नहीं हो सकी। लेकिन मैंने जो तुझे कैदखाने में डाल दिया यह तुम्हारे लिए कैसे अच्छा हुआ? बीरबल ने कहा-महाराज, यह तो बहुत ही अच्छा हुआ कि आपने मुझे कारागार में डाल दिया। वरना आप शिकार पर जाते हुए मुझे भी साथ में ले जाते और अँगुली कटी होने के कारण आप तो बच जाते, पर बलि का बकरा मैं बन जाता। विपरीत स्थितियों के बनने पर आर्त और रौ-ध्यान न करें, बल्कि प्रकृति की व्यवस्था मानकर स्वीकार कर लीजिए। होनी होकर रहती है, अनहोनी कभी होती नहीं। याद रखिए-जब जो जैसा होता है तब वो वैसा होना होता | 83 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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