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________________ प्रेरणा मिले, जिससे बच्चे जिंदगी में अटकें नहीं, भटकें नहीं और वे सदा आगे बढ़ते रहें, यशस्वी हों, सफल हों । उनके जीवन में सार्थकताएँ फलती फूलती नज़र आएँ। आप अपने बच्चों को खूब आशीर्वाद दें। आपके आशीर्वाद उनकी प्रगति की कुंजी बन जाएँ। अब बच्चो, मैं आपसे भी कहूँगा, जो युवा हैं, किशोर हैं, विद्यालय या महाविद्यालय में भी पढ़ते हैं या नहीं पढ़ते हैं । आप अपने जीवन का बेहतर लक्ष्य निर्धारित करें। ऊँचे लक्ष्य, ऊँचे सपने और कठोर परिश्रम करने का जिनमें जज्बा और साहस होता है, वे ही लोग भविष्य के हस्ताक्षर होते हैं । मेरे प्यारे बच्चो, तुम ऊँचे सपने देखना सीखो अर्थात् ऊँचे लक्ष्य बनाओ, ऊँचे विचार रखो और उन्हें पूरा करने के लिए कठिन मेहनत करो। आपकी सारी सफलता आपकी मेहनत पर ही टिकी है । अर्जुन की तरह लक्ष्य पर ही आपकी निगाह रहे । जिस तरह लक्ष्यसंधान के लिए अर्जुन को केवल चिड़िया की आँख ही दिखाई दे रही थी उसी तरह आप भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जुट जाएँ । लगातार मेहनत करने से पत्थर भी घिसकर गोल हो जाते हैं, फिर आप तो बुद्धिमान हैं, लगन से क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता ? दूसरी बात कहूँगा कि आप स्वावलम्बी बनें। अपना काम ख़ुद करने की आदत डालें। जो लोग अपना काम ख़ुद नहीं करते उन्हें ही योगासन करने की ज़रूरत होती है, ख़ुद को मेन्टेन करने के लिए जिम में जाना पड़ता है। आप जानते हैं कि मज़दूर को सोने के लिए कभी नींद की गोली नहीं खानी पड़ती। जिन्हें दो कदम चलना भी गँवारा नहीं होता, उन्हीं के लिए बड़े-बड़े अस्पताल हैं। सुबह जल्दी उठें, सूर्योदय के पूर्व जगें । आवश्यक कार्य निपटाकर सबसे पहले घर में बिखरे हुए साजो-सामान को व्यस्थित करें, घर को सँवारेंसजाएँ। लड़कियाँ घर के काम-काज में अपनी माँ की मदद करें। आप पढ़ीलिखी हैं तो भी खाना बनाना तो आना ही चाहिए न् । जब आप अच्छा खाना बना सकेंगी तभी तो नौकर को निर्देश देकर आप उनसे खाना बनवा सकेंगी। सभी किशोर और युवा समझ लें कि पढ़ाई के साथ-साथ जीवन में उनके कुछ और भी दायित्व हैं, जिन्हें अवश्य ही पूरा किया जाना चाहिए । खान-पान, रहन-सहन का सलीका होना चाहिए। मैं देखा करता हूँ कि घर को कैसे स्वर्ग बनाएं - 3 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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