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एक के कार्य में दूसरा हस्तक्षेप न करे। तुमने अगर गलत किया है तो उसका परिणाम भी सामने आ जाएगा और अच्छा किया है तो उसका परिणाम भी छिपने वाला नहीं है। आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे की सलाह ले लो। हम दोनों भाई तो तीन सौ पैंसठ दिन एक ही पात्र में एक साथ भोजन करते हैं। एक भाईरोटी चूरता है तो दूसरा भाई उसे आनन्दपूर्वक खाता है। भाई के हाथ से चूरी हुई रोटी का स्वाद ही अनेरा होता है। भाई-भाई का प्रेम तो स्वर्ग के आनंद से भी बढ़कर होता है। ____धर्म वह नहीं है जो शास्त्रोक्त है बल्कि धर्म तो वह है जिसे व्यावहारिक जीवन में धारण किया जा सके। पहले कर्तव्य तो माता-पिता के हैं अपनी संतानों के प्रति, दूसरे कर्तव्य संतानों के हैं अपने माता-पिता के प्रति । मैं चाहता हूँ कि आप लोगों का घर स्वर्ग का प्रवेश-द्वार बन जाए। माता-पिता, बुजुर्ग सभी अपने-अपने दायित्व निभाएँ। न जाने कितनी आस, आरजू से घर में बच्चे का जन्म होता है, उसे मारें-पीटें नहीं, अपने टीटू के कान न मरोड़ें। वह आपका टीटू है, टटू नहीं। अपशब्दों का प्रयोग न करें। शराब, सिगरेट जैसे दुर्व्यसन न करें। ऐसा कुछ भी न करें और न कहें जिनसे बच्चों में गलत संस्कार पड़ें। बच्चों को एक कार ज़रूर दीजिए, पर वह कार किसी मारुति या होंडा की न हो बल्कि संस्कारों की कार हो । अपने बच्चों को संस्कारों की कार दीजिए। बच्चों का जीवन आईने जैसा होता है। वह जो जैसा देखेगा, वैसा ही पुन: आपको दिखाएगा। बच्चे कैमरे की भाँति हर चीज को अपने अंदर उतार लेते हैं और समझ आने पर वापस उसे ही दिखा देते हैं एकदम चलचित्र की तरह ! इसलिए बच्चों के साथ अच्छा कीजिए और अच्छा पाइए। उन्हें लायक बनाइए, पर ऐसालायक भीमत बनाइए किवो आपके प्रति नालायक बन जाए।
याद रखिए, समाज का अध्यक्ष बन कर समाज का संचालन करना आसान हो सकता है लेकिन घर का अभिभावक होकर अपने घर के बच्चों का पालन-पोषण करना कठिन होता है। देश के प्रधानमंत्री के लिए शायद देश का संचालन करना सहज हो, पर अपने ही बेटे को सुसंस्कारित करना देश को संचालित करने से भी मुश्किल काम है। पिता इसीलिए तो आदरणीय होते हैं क्योंकि वे हमें अपने पाँवों पर खड़ा होना सिखाते हैं। केवल उपदेशक न बनें, कर्ता बनें। जो शिक्षाप्रद बातें आपने अपने बच्चों, नाती, पोतों से कही हैं उनके उदाहरण स्वयं बनें। जब बच्चे आपको वैसा ही करता हुआ देखेंगे तो वे स्वयं भी वैसा ही अनुकरण करेंगे। बच्चों के लिए सिर्फ पैसा ही खर्च न करें, उन पर अपने समय का भी निवेश करें। आप उन्हें ऐसे संस्कार दीजिए कि सभी उस पर गर्व कर सकें। बच्चों को इतना योग्य बनाइए कि वे
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