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________________ रखो, एक दिन तुम्हारा सपना ज़रूर पूरा होगा, तुम्हारा बेटा कलेक्टर ही बनेगा | वह युवक बंदीगृह से मुक्त होकर अपने अध्ययन में जुट जाता है और तत्कालीन आई.ए.एस. की डिग्री प्राप्त करता है । माँ के चरणों में प्रणाम करते हुए कहता है, 'माँ मैं कलेक्टर बन गया हूँ, पर पराधीन भारत का नहीं, स्वतंत्र भारत का ।' वे स्वतंत्र देश के पहले कलेक्टर बने और उनकी पहली ड्यूटी मदुरै में लगी थी। आप किसी भी उम्र के क्यों न हों, बस संकल्प करें और साहस और आत्मविश्वास से जुट जाएँ । सफलता एक न एक दिन आपके क़दमों में होगी। समय कितना भी लग जाए लेकिन आपके भीतर कुछ बनने का जज़्बा होगा, हिम्मत होगी तो आप वह बन जाएंगे। जन्म से कोई भाग्य लेकर नहीं आता, पुरुषार्थ के द्वारा भाग्य जगाया और बनाया जाता है । हम भी साहस और आत्मविश्वास के द्वारा मज़बूत मन के मालिक बन सकते हैं। आत्मविश्वास के मालिक बनने के लिए हीनभावना दूर कीजिए। ज़राज़रा सी बात पर खीझना, चिड़चिड़ाना, बिलबिला जाना, भयभीत रहना ये सब असफलता के लक्षण हैं । हमेशा प्रसन्न रहिए, खीझिए और झुंझलाइए नहीं । दिमाग़ के आले में जमे हीनभावना के जाले को निकाल फेंकिए । 'मैं गरीब आदमी, छोटी जाति का, मैं क्या कर सकता हूँ, मेरी क्या औकात है, इन सब बातों को मन से हटा दीजिए और सोचिए कि मैं क्या नहीं कर सकता ? मैं सब कुछ, जो चाहूँ, कर सकता हूँ। मैं कुछ बनना चाहूँ और न बन सकूँ यह कैसे मुमकिन हो सकता है ? ' अपने रंगरूप को देखकर मन छोटा न कीजिए। सुकरात और सिकंदर भी सांवले थे, देश के महान् कवि मलिक मोहम्मद जायसी भी काने थे। रंग से काला या साँवला होना कोई बात नहीं है । यह तो प्रकृति की दी हुई चीज़ है, पर आप अपने मन को तो उजला बना सकते हैं। चेहरे को रंग देना प्रकृति का काम है, पर अपने मन को रंग देना तो आप ही के बस में है । मैं एक ऐसे डॉक्टर को जानता हूँ जो हमारे बहुत क़रीब सम्पर्क में हैं। मैं इस घटना का पहले भी उल्लेख कर चुका हूँ। आज फिर इसलिए कहना चाहता हूँ कि आप प्रेरणा ले सकें। हाँ, वह डॉक्टर एकदम काला और चेचक के दागों वाला है। घर को कैसे स्वर्ग बनाएं - 9 | 129 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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