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अनुरूप ढलना होगा और नई पीढ़ी को भी पुरानी पीढ़ी को समझते हुए घर के माहौल में समझौते के हालात बनाने होंगे। न तो हम पुरानी पीढ़ी को इन्कार करें और न ही नई पीढ़ी के प्रति ही अस्वीकार का भाव लेकर आएँ। एक-दूसरे के प्रति रहने वाले त्याग के भाव में ही परिवार की आत्मा समाई रहती है ।
रामायण त्याग का आदर्श है। मैं तो कहूँगा कि हर घर में 'रामायण' ज़रूर होनी चाहिए। गीता, आगम, पिटक, बाइबिल, कुरान आदि सब शास्त्रों का मूल्य रामायण के बाद है क्योंकि रामायण बताती है कि घर और परिवार को किस तरह से त्याग और आत्मीयता के धरातल पर रखा जा सकता है। रामायण हमारे लिए आदर्श है। मैं महज़ राम-राम रटने की प्रेरणा नहीं दूँगा। मैं राम से, रामायण से घरपरिवार में कुछ सीखने की प्रेरणा दूँगा। मैंने भी राम और रामायण से सीखा है। मेरे माता-पिता ने अपने जीवन में संन्यास धारण किया। उनकी तहे दिल की इच्छा थी कि वे अपने बुढ़ापे को प्रभु के लिए समर्पित करें। हम भाइयों ने मंत्रणा की कि अगर माता-पिता संन्यास लेते हैं तो हम भाइयों में से कोई न कोई भाई उनकी सेवा के लिए संन्यास धारण करेगा और तब हम दो भाइयों ने, मैंने और ललितप्रभ जी ने दीक्षा ली। माता-पिता की सेवा के लिए तो एक भाई पर्याप्त था पर भाई अकेला न पड़ जाए इसलिए दो भाइयों ने संन्यास का मार्ग अख्तियार किया । यह है हमारे घर की
रामायण ।
रामायण इंसान के लिए पहली धार्मिक प्रेरणा है जब कि कुरआन और गीता दूसरी प्रेरणा, पिटक तीसरी प्रेरणा और आगम चौथी प्रेरणा है। रामायण कुंजी है घर को स्वर्ग बनाने के लिए। हो सकता है कि रामायण में कुछ ऐसे पहलू भी हों जो हमें ठीक न लगें, पर दुनिया की कोई भी चीज आखिर हर दृष्टि से 100% सही या फिट हो भी तो नहीं सकती। हर युग की अपनी दृष्टि और मर्यादा होती है, पर रामायण में भी 90% तथ्य ऐसे हैं जो हमारे युग को, हमारे जीवन और समाज को प्रकाश का पुंज प्रदान कर सकते हैं। उन्हीं से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि एक बेटा अपने पिता के वचनों का मान रखने के लिए वनवास तक ले लेता है। एक पत्नी अपने पति के पदचिह्नों का अनुसरण करती हुए वन-गमन करती है तो एक भाई अपने भाई का साथ देने के लिए वनवास स्वीकार कर लेता है। एक भाई राजमहल में रहकर भी भाई के दुःख का स्मरण कर राजमहल में भी वनवासी का जीवन व्यतीत करता है। यह सब पारिवारिक त्याग की पराकाष्ठा है। इससे बढ़कर दूसरा शास्त्र क्या होगा ? शायद राजमहल में रहते हुए राम को इतना भ्रातृ-सुख नहीं मिलता जितना वन में रहते हुए
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