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रामगोपाल जी राठी को ही लीजिए। डोकरा बयासी वर्ष की उम्र में भी छोकरों की तरह नृत्य करता है। उनमें ग़ज़ब की फुर्ती है, शरीर में ग़ज़ब का लोच है। नाचने की आदत कोई जीवन भर से नहीं है। पिछले दो-तीन वर्षों से भक्ति का रंग लगा और बस भजनों के साथ थिरकने लगे। उनके जीवन में भी क्या मस्ती है ! सचमुच, जिनके भीतर हौंसला और हिम्मत जग जाती है, वे आने वाले कल के लिए हस्ती बन जाते हैं। मेरी समझ से वे बूढ़े तन में भी नाचते हुए युवा हैं । यौवन का सम्बन्ध तन से नहीं, मन से है। मन मज़बूत तो तन भी मज़बत। मन मरा कि गया काम से। ऐसे लोग फिर आलसी टट्ट हो जाया करते हैं।
जीवन के विकास का पहला द्वार ही साहस और आत्म-विश्वास है। आत्म-विश्वास उन्नति की पहली सीढ़ी और प्रगति का द्वार है; वह जीवन की शक्ति और भीतर का मित्र है। आत्मविश्वास से भरे व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। उसके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं है क्योंकि 'ना' को हटाकर, नकारात्मकता को हटाकर उसने सब कुछ मुमकिन बना लिया है। आप वृद्ध होने पर निष्क्रिय और अकर्मण्य न बनें। गीता का भी यही सारसंदेश है कि व्यक्ति स्वयं को सदा कर्त्तव्य-पथ पर सन्नद्ध रखे। भगवान ने यही अर्जुन से कहा था कि 'तुम अपनी नपुंसकता का त्याग करो और कर्तव्यों के लिए खड़े हो जाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ।' कर्त्तव्यशील व्यक्ति के साथ भगवान सदा रहते हैं। अपने आत्म-विश्वास को जगाइए। जो भी व्यक्ति महान् बन पाए उनके पीछे बुनियादी कारण रहा उनका आत्म-विश्वास। महज़ क़िस्मत और भाग्य का आलम्बन मत लीजिए।
आपने भगवान महावीर के वे चित्र देखे होंगे जिनमें ग्वाला उनके कानों में कीलें ठोंक रहा है या उन्हें हंटर और बेंत से पीट रहा है। जब देवराज इन्द्र ने यह प्रत्यक्ष में देखा तो उसने आकर प्रभु से विनती की, 'भगवन् आपके साधनाकाल में अनेक कष्ट, उपसर्ग और संत्रास आएंगे, आप मुझे आज्ञा दें कि आपकी निर्विघ्न साधना के लिए मैं इन उपसर्गों से आपकी रक्षा कर सकूँ।' तब भगवान ने कहा, 'वत्स, व्यक्ति अपने जीवन का विकास अपने ही बलबूते पर करता है। अगर किसी को आत्मज्ञान भी पाना है तो दूसरों के द्वारा नहीं, बल्कि अपने ही विश्वास के बल पर वह केवलज्ञान या आत्मज्ञान के शिखर छू
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