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________________ प्राणायाम को सरलतापूर्वक करने के लिए आप क्रियायोग कीजिए या सुदर्शन क्रिया कीजिए । आजकल कपाल भाति का भी ख़ूब प्रचलन हो रहा है। प्राणायाम करवा कौन रहा है, यह कम महत्वपूर्ण है । प्राणायाम आप कितने मन से कर रहे हैं यह ख़ास है । पहले दिन आप पाँच मिनट से शुरुआत कीजिए । धीरे-धीरे उसमें एक-एक मिनट का समय बठाते रहिए । जिस दिन आप सहज में पन्द्रह मिनट तक पहुँच जाएँ, आप अपने तन-मन का निरीक्षण कर सकते हैं। आप पाएँगे कि आपके तन-मन में पूर्वापेक्षा काफ़ी सुधार हुआ है, तन-मन के विकार कम हुए हैं, ताज़गी मिली है। आप ऊर्जावान हुए हैं । अंतिम तत्त्व है : आकाश । इसे साधने के लिए हम ध्यान करते हैं । ध्यान में हम विचार नहीं करते। जैसे आकाश खाली, वैसे ही अपने मन को पूर्णरूपेण खाली करने का प्रयास करते हैं और केवल एक ही बोध रखते हैं कि मैं अपने मन को, दिमाग को शून्य और शांतिमय बना रहा हूँ । 'अंतरमन को शांतिमय बना रहा हूँ' यह धारणा रखते हुए हम पहले दिन तीन मिनट, दूसरे दिन चार मिनट, इस तरह क्रमशः एक-एक मिनट बढ़ाते हुए अड़तालीस मिनिट तक पहुंचते हैं और स्वयं को आकाश तत्त्व के साथ जोड़ते हैं । ध्यान धरना यानी भीतर से आकाश हो जाना है। हालांकि आकाश में भी बादल घुमड़ते हैं, आँधी-तूफ़ान चलते हैं, औस- कोहरा घिरता है, पर इसके बावज़ूद ऐसा वक़्त भी आता है जब आकाश सबसे निष्पृह और मुक्त होता है। हमें हमारी अंतस्- सत्ता में भी आकाश की तरह ही विचार और कल्पनाओं की धूल उड़ती नज़र आती है, पर धीरे-धीरे, ज्यों-ज्यों हम धैर्य धारण करते हैं, भीतर में ध्यान और शांति दोनों ही साकार होते चले जाते हैं । तो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश - ये वे पाँच तत्त्व हैं जिनके जरिए हम स्वस्थ और आनंदमय रहते हैं । इनसे हमारे दिल, दिमाग और शरीर का संतुलन स्थापित होता है। शरीर का प्रत्येक अंग महत्त्वपूर्ण है। देह की दृष्टि से हर व्यक्ति करोड़पति है । अगर एक आँख की कीमत दस लाख है तो दूसरी आँख भी दस लाख की है। एक गुर्दा दस लाख का तो दूसरा गुर्दा भी दस लाख का है। इस प्रकार चालीस लाख से आप लखपति हो गए। अरे, शरीर का हर अंग बेशक़ीमती है। इसे नश्वर मत समझो, व्यर्थ मत समझो। यह घर को कैसे स्वर्ग बनाएं - 7 112 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003879
Book TitleGhar ko Kaise Swarg Banaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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