SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से-कम आधा एक घंटे के लिए तो टाल ही दें। अन्यथा हो सकता है गलती किसी और ने की हो और आप सीमा से ज्यादा गुस्सा कर बैठें तो वह गलती का प्रायश्चित करें या न करें पर आपको गुस्से का प्रायश्चित करना पड़ सकता कल की बात है एक बहिन अपने दो बच्चों के साथ फेस्टिवेल मेला देखने गयी। एक बच्चा है दस साल का, दूसरा बारह का। छोटे वाले बच्चे ने किसी बात को लेकर मेले में थोड़ी-सी जिद पकड़ ली होगी। मम्मी पहले ही किसी बात को लेकर दिमाग से भारी थी, उसने आवेश में आकर बच्चे को जोर से चाँटा मार दिया। वैसे बच्चा समझदार था, अतः उसने अपनी जिद छोड़ दी। रात को सोते समय मम्मी को लगा कि बच्चे की सामान्य-सी गलती पर दस लोगों के बीच चाँटा मारकर उसने अच्छा नहीं किया और उसने अपने बच्चे से सॉरी कहा। गलती से ज्यादा गुस्सा करने पर सॉरी सामने वाले को नहीं आपको कहनी पड़ेगी। अतः तत्काल गुस्सा करने की बजाय अपनी गलती का अहसास स्वयं बच्चे को होने दें। क्रोध हमारी समझदारी को बाहर निकाल कर उस पर चिटकनी लगा देता है। जब आप चौबीस घंटे के बाद अपने गुस्से को व्यक्त करेंगे तो वह क्रोध भी होश और बोधपूर्वक होगा। फिर आप जब अपनी बात को व्यक्त भी करेंगे तो विपरीत वातावरण से बचेंगे। क्रोध करो मगर समझपूर्वक। स्वयं को अनुपस्थित समझें क्रोध से बचने के लिए दूसरे प्रयोग को भी अपनाया जा सकता है और वह है 'स्वयं को अनुपस्थित समझो।' जब भी विपरीत वातावरण पैदा हो, आप यह सोचें कि अगर मैं यहाँ नहीं होता तो उन सब बातों का जवाब कौन देता? आपका यह विवेक आपको क्रोध के वातावरण से बचा लेगा। जैसे आप मुझसे मिलकर अपने घर गए। खिड़की से आपने देखा कि आपकी पत्नी और उसका भाई बातचीत कर रहे हैं। आपने सुना कि आपकी पत्नी आपके बारे में ही कई तरह की उल्टी-सीधी बातें कर रही हैं। जैसे मेरे पति हाथखर्ची नहीं देते, मेरा ध्यान नहीं रखते, मेरे लिए उल्टी सीधी बातें करते हैं और भी पता नहीं बेसिरपैर की कितनी ही बातें वह कर रही है। स्वाभाविक है कि उस 59 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy