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________________ पहुँचा, उसे गले लगाया और दीनारों की थैली देते हुए कहा, 'जा, मैंने तुम्हें गुलामी से मुक्त किया।' गुलाम चला गया, खलीफा अपने काम में व्यस्त हो गया लेकिन कुरान की ये तीन आयतें मनुष्य-जाति के लिए वरदान बन गईं। मेरा खयाल है कि ये तीन सूत्र हमारे जीवन में उतर जाने चाहिए। तभी हम क्रोध को कैसे काबू कर सकते हैं यह सीख पायेंगे। ये शब्द किसी सुरीले संगीत की तरह हैं जो हमारे जीवन को सुखद बना सकते हैं। ले पवित्र शब्द हिमाचल की किसी चोटी को छूकर आई हुई किरण की ही तरह हैं जो जीवन को सतरंगा बना दे। ये आयतें हमारे अन्तर हृदय में उतर जानी चाहिये। सदा याद रखें- जन्नत यानी स्वर्ग उनके लिए है जो अपने गुस्से को काबू में रखते हैं, और जन्नत उनके लिए हैं जो गलती करने वालों को माफ कर दिया करते हैं, ईश्वर उन्हीं से प्रेम करता है जो दयालु और क्षमाशील होते हैं। ___ हमारी सबसे मैत्री हो, सबसे निकटता हो। आप नहीं जानते कि जिन संबंधों को वर्षों तक तराश कर बनाया जाता है, वे दस मिनिट के क्रोध से समाप्त हो जाते हैं। क्रोध से शरीर का भी क्षय होता है। क्रोधी व्यक्ति कभी हृष्ट-पुष्ट नहीं हो सकता। क्रोध उसके पुद्गल-परमाणुओं को जला देता है। जो ऊर्जा ऊर्ध्वगमन कर हमें शक्ति प्रदान कर सकती थी, वह क्रोध में जलकर नष्ट हो जाती है। काम की तरह क्रोध से भी शक्ति का नाश होता है। मैंने देखा है कि लोग क्रोध करना भी अपनी इज्जत समझते हैं। उनका मानना है कि क्रोध करने से दूसरे लोग उनकी बात मान जायेंगे। वे इसमें भी अपने अहंकार को पोषित करते हैं। अरे, क्या क्रोध किसी को इज्जत दे पाया है? उसमें तो अनादर का भाव ही भरा है। फिर हम क्रोध पर कैसे विजय पायें? इसके लिए मैं कुछ उपयोगी सुझाव देना चाहता हूँ। क्रोध-मुक्ति के टिप्स क्रोध मुक्ति के लिए पहला सूत्र है, कल पर टालो किसी की गलती या विपरीत टिप्पणी को।' आपको गुस्सा आ गया तो मैं कहूँगा कि आप अपने क्रोध को अवश्य प्रकट करें पर इसकी लपट कहीं आपको न जला बैठे, अतः आप अपने गुस्से को चौबीस घंटे के बाद व्यक्त करें। जब भी गुस्सा आए, तत्काल उस पर विवेक का अंकुश लगाएँ और उसे कल पर टाल दें। कम 58 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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