SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनके मन में प्रेम और शांति का निर्झर बहा करता है वे ही लोग अप्रियता, कलह, कटुता और विरोध का वातावरण बनने पर भी उसे प्रेम और क्षमा में ढाल लिया करते हैं। महात्मा गांधी पानी के जहाज पर यात्रा कर रहे थे। उस यात्रा में एक अंग्रेज यात्री भी था जो गांधी जी से नाराज था। उसने अपशब्दों से भरा एक पत्र गांधीजी को लिखा और सोचा कि जब मैं उसे गांधी को दूंगा तो वे नाराज होंगे, झल्लाएँगे, क्रोध करेंगे। और भी क्या-क्या करेंगे, यह देखूगा। गांधीजी के पास पत्र पहुँचा। सरसरी निगाह से उन्होंने पत्र देखा, पढ़ा, उसमें लगी आलपिन निकाली, उसे जेब में रखा और कागज पानी में फेंक दिया। गांधीजी के सहायक ने जब यह देखा तो उससे पूछे बिना न रहा गया कि उन्होंने पिन तो निकाल ली और पत्र क्यों फेंक दिया? गांधी जी ने कहा- 'उसमें पिन ही एक काम की चीज थी जो मैंने रख ली। बाकी सब बेकार की बातें थी, सो मैंने फेंक दी।' काम की बात हो तो उसे स्वीकार लो और बेकार की बातों को फेंक दें। जहाँ मौज, वहाँ ओज प्रसन्न रहो, हर हाल में खुश रहो। प्रसन्नता आपके सौन्दर्य को द्विगुणित करती है। आप प्रेम में, वात्सल्य में जीकर तो देखें। जितने आप जवानी में सुन्दर हैं उससे भी अधिक बुढ़ापे में सुन्दर दिखाई देंगे। क्या आपने गांधीजी का जवानी और बुढ़ापे का चित्र देखा है? तीस वर्ष की आयु में वे जैसे दिखते थे, सत्तर वर्ष की आयु में उससे कहीं अधिक सुन्दर दिखने लगे थे। जैसे-जैसे व्यक्ति के विचार सुन्दर होते जाते हैं उसका भीतरी सौन्दर्य चेहरे पर प्रकट होने लगता है। महावीर तो निर्वस्त्र रहते थे- हवा, धूप, पानी में भी। फिर भी उनका सौन्दर्य अप्रतिम था। आपने महर्षि अरविंद का वृद्धावस्था का चित्र देखा है? उनके चेहरे का ओज, तेज और सौन्दर्य कितना अधिक आकर्षक था? बुढ़ापे में उप्ती का चेहरा बदसूरत होता है जिसके विचार सुन्दर नहीं होते। जिसकी विचारदशा सुन्दर होती है, वह जैसे-जैसे बूढ़ा होता है, उसके चेहरे पर सौन्दर्य छलछलाने लगता है। किसी के कल्याण के लिये अपनी ओर से जो कुछ भी हो सके, कर दो। अगर नहीं कर सको तो सहज रहो, अपने मन को हमेशा निर्मल रखो। मैंने 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003878
Book TitleKaise Sulzaye Man ki Ulzan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages146
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy