________________
जब हम किसी के द्वारा अपने लिए कष्ट नहीं चाहते, तो हमें यह कतई अधिकार नहीं है कि हमारे द्वारा किसी और को कष्ट पहुंचे। जब हम स्वयं मरना नहीं चाहते, तो हमें किसी को मारने का अधिकार कहां से मिलेगा ! आखिर सबका जीवन समान है, सभी में जीने की समान इच्छा है । वह व्यक्ति निहायत स्वार्थी है, जो केवल अपनी पेटी भरना चाहता है । मानवता का तकाजा है कि व्यक्ति औरों के भी पेट की चिंता करे | इस हेतु होने वाली व्यवस्था में वह अपनी भी सहभागिता निभाए ।
सारी धरती प्रेम की प्यासी
मनुष्य स्वार्थ का ऐसा बुर्का ओढ़ लिया है कि उसे अपने और अपने निजी परिवार के कल्याण के अलावा कुछ सूझता ही नहीं । मनुष्य का फर्ज तो यह बनता है कि वह उन गरीबों के मांगल्य का भी ध्यान रखे, जो उसके पड़ोस में बसे हुए हैं। ईश्वर करे कि हर घर फले-फूले, पर सुखों का जो तरुवर हम अपने घर में लगाएं, उसकी शीतल छाया पड़ोसियों के घरों तक भी पहुंचे ।
माना कि फल मधुर होते हैं और फूल सुवासित, लेकिन इंसान पेड़ की उन पत्तियों की तरह बने, जो हर किसी को समर्पित भाव से शीतल छाया दिया करती हैं। अगर तुमने वह कहानी सुन रखी हो, जिसमें आदमी पड़ोसी की दो आंख फुड़वाने के लिए अपनी एक फुड़वाने को तैयार हो जाता है, तो इसे क्या तुम मानवीयता कहोगे? इतना स्वार्थी तो जानवर भी न होगा ।
तुम इंसान हो, तो इंसान के फर्ज और धर्म अदा करो । यह सारी धरती तुम्हारे प्रेम की प्यासी है। तुम अपने प्रेम और सहानुभूति की बौछारों से दुनिया का आंगन पुष्पित और सुरभित कर डालो । धरती पर आए हो, तो कुछ ऐसा करके जाओ कि जिससे आने वाली पीढ़ियां तुम्हें याद कर सकें और तुम्हारा नाम आने पर आस्था और आभार के दो अश्रु-पुष्प अर्पित कर सकें।
Jain Education International
77
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org