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माना कि अपवाद तो तब भी होते थे, लेकिन आज की शिक्षा बहुत संकुचित हो चुकी है।
शिक्षित वर्ग अशिक्षित क्यों ?
आज हर विद्यार्थी का लक्ष्य पाठ्यक्रम को उत्तीर्ण करना, उपाधि हासिल करना और रोजी-रोटी के लिए उस उपाधि का उपयोग करना ही रह गया है। यही कारण है कि हमारे दैनंदिनीय जीवन से स्वाध्याय का विलोप हो गया है, हम किसी समाचार-पत्र अथवा मनोरंजन से जुड़ी पत्र-पत्रिका भले ही देख-पढ़ लेते हों, लेकिन इसके अलावा पठन-मनन के प्रयास देखने को नहीं मिलते। व्यक्ति के ज्ञान में नित्य नूतनता और परिपक्वता का स्वरूप देखने को नहीं मिलता। हमने जो पढ़ाई भी की है, उसका भी न जाने क्या तरीका रहा कि आज यदि किसी डॉक्टरेट व्यक्ति से पूछा जाए कि तुमने अपनी आठवीं और दसवीं की पढ़ाई में कौन-कौन से पाठ पढ़े, तो उसके लिए बताना मुश्किल हो जाएगा। शिक्षा का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आगे पढ़ते जाओ और पिछला जो पढ़ा है, उसे भूलते जाओ। हर अगला वास्तव में पिछले का विकास होता है, पर उसे भूल जाना अपने आपके साथ छलावा है। शिक्षा के साथ स्वाध्याय का संबंध न जोड़ पाने के कारण ही आज का आम शिक्षित वर्ग अशिक्षित-सा बना हुआ है। भला यह कौन नहीं जानता कि शराब या सिगरेट पीना, जर्दा-तंबाकू खाना व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए छिपा हुआ जहर है, लेकिन इसके बावजूद इन सबका धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। सरकार और शासन-प्रशासन भी विद्यार्थियों की पाठ्य पुस्तकों में तो इनके निषेध का उल्लेख करते हैं, वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में इनके दुष्परिणामों का निष्कर्ष निकालते हैं, लेकिन सरकारों ने न जाने कौन-सी भांग पी रखी है? करे भी तो क्या, इनकी आमद से ही सरकारों का खर्चा निकलता है, उनकी सरकारों का अस्तित्व टिका है।
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