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________________ कथन हर दिल में जीने की ख्वाहिश है और हर आँख में सुनहरे कल का सपना। उस सपने को सच करने के लिए आदमी दिलो-जान से जुटा रहता है। जब ख्वाब हकीकत नहीं बनता, तो आदमी टूट-सा जाता है, कई-कई मानसिक उलझनें पाल लेता है। उसे जीने की कोई राह नजर नहीं आती। ऐसे में पूज्यश्री चन्द्रप्रभजी की अमृत वाणी स्वस्थ-मधुर-प्रसन्न जीवन का संदेश लिए प्रकट होती है और कहती है-जिएँ तो ऐसे जिएँ। पूज्यवर श्री चन्द्रप्रभजी जीवन की बारीकियों और गहराइयों को बड़ी सहजता से जनमानस के समक्ष उपस्थापित करते हैं। आपका विपुल साहित्य कोई बौद्धिक खुराक नहीं है, बल्कि आत्म-परिवर्तन और जीवन-क्रांति के बीज अपने में संजोए है। जोधपुर स्थित संबोधि-धाम उनकी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है, जहाँ उन्होंने धर्म और दर्शन को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया है। योग के जिस अलौकिक आनंद की अनुभूति पूज्यश्री करते रहे हैं, उसी की दिव्य महक संबोधि-धाम देश-विदेश के साधकों के बीच फैला रहा है। उनकी पल-भर की निकटता हमें जीवन का गहरा एवं आत्मिक सुकून देने वाली है। जीवन बहुत सरल है, मगर स्वयं आदमी ने ही आज उसे जटिल बना दिया है। हजारों दिक्कतों-दुश्वारियों के चलते आदमी के लिए जीवन भारभूत बन गया है। आदमी की सौम्य मुस्कान न जाने कहाँ खो गई है। इसी बोझिल बन चुके जीवन में नई ऊर्जा, नई प्रेरणा फूंकते हुए पूज्यप्रवर कहते हैं कि जीवन से बढ़कर कोई आनंद नहीं है और न ही जीवन से बढ़कर कोई सौंदर्य । जिस व्यक्ति ने जीवन के मर्म को छुआ है, उसे जिया है, वह जानता है कि जीवन से बढ़कर कोई और वरदान नहीं हो सकता। इस ईश्वरीय सौगात को हम आनंदोत्सव बनाकर जिएँ, आनंद का महोत्सव बनाकर जिएँ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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