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कैसे करें साक्षी-ध्यान
'साक्षी-ध्यान' के लिए हम सिर्फ मौन होकर बैठे और सांस पर ध्यान रखते हुए अपने चित्त की गतिविधि को, देहगत संवेदना को मात्र देखें। सिर्फ साक्षी बनकर, तटस्थ बनकर। संवेदनाएं उठेगी, बदलेंगी; मन की स्थिति और भावनाएं उठेगी, बदलेंगी; हम तन-मन की हर स्थिति और पर्याय-परिवर्तन को मात्र साक्षी बनकर देखें। जैसे-जैसे साक्षी-भाव सधेगा, विचारों-कषायों और भावनाओं का कोहराम शांत होता जाएगा। हम सहज, निराकुल, उल्लसित और स्वच्छ-स्वस्थ होते जाएंगे। हमारे भीतर आत्म-चेतना का आकाश साकार हो उठेगा। प्रयोग : साक्षी-ध्यान की स्वस्थ बैठक के लिए हम सहज-शांत और खुले हवादार स्थान का चयन करें। सुबह की पहली बैठक करने से पूर्व स्नान व शौच से अवश्य निवृत्त हो लें, ताकि प्रमाद और मल का विरेचन हो जाए। नियमित बैठक के लिए मोटा आसन रखें, जिससे कि बैठने में सुविधा रहे। कपड़े ढीले पहनें, श्वेत वस्त्र हों, तो और सुकून की बात है। शरीर में शिथिलता या जकड़न महसूस हो रही हो, तो थोड़ा योगासन या हलका व्यायाम कर सकते हैं। हम सुखासन अथवा सिद्धासन में बैठें। ध्यान-मुद्रा ग्रहण, कमर सीधी, गर्दन सीधी, हाथ की स्थिति घुटनों पर-चैतन्य-मुद्रा में अथवा गोद में।
पहला चरण:
श्वास-दर्शन : एकाग्र बोध
समय : 20 मिनट ध्यान का संकल्प ग्रहण...तन-मन की सहज स्थिति का निरीक्षण...पूरी तरह तनावरहित...हृदय में प्रसन्नता का संचार...श्वास की सहज स्थिति का निरीक्षण और ध्यान में प्रवेश। (शुरुआती अभ्यास में हम दीर्घ श्वास और मंद श्वास का प्रयोग कर लें, शेष तो सहजता और सजगता ही साक्षी-ध्यान अथवा संबोधि-ध्यान है।)
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