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________________ हैं ? जीवन की सफलताओं में स्वस्थ- सुंदर शरीर की भूमिका अगर बीस प्रतिशत है, तो स्वस्थ- सुंदर मन की भूमिका अस्सी प्रतिशत । यह कैसी विचित्र बात है कि जिस पर बीस प्रतिशत ध्यान दिया जाना चाहिए, उस पर तो हम अस्सी प्रतिशत ध्यान देते हैं और जिस पर अस्सी प्रतिशत ध्यान दिया जाना चाहिए, उस पर हम बीस प्रतिशत भी नहीं दे पाते ! स्वस्थ जीवन का स्वामी होने के लिए हमें तन-मन की स्वस्थता और सुमधुरता पर अपना ध्यान अधिक देना होगा । जीवन में किसी खास वस्तु को देना प्रकृति की मेहरबानी है, पर उस खासियत का सही उपयोग करना मनुष्य की जवाबदारी | नीबू को आंख में डालकर आंसू ढुलकाना या नीबू पानी की शिकंजी पीकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना यह सब मनुष्य पर ही निर्भर करता है । 'ग' से गणेश भी होता है और गधा भी; 'स' से सत्य भी होता है और सत्यानाश भी । किसी भी अक्षर या शब्द का कैसा उपयोग करना है - यह आदमी की सोच और समझ पर ही निर्भर करेगा । दिखने में सारे इंसान एक जैसे ही होते हैं - वही आंख-कान-नाक- हाथ-मुंह, पर सबके सोचने-समझने के अलग-अलग तरीके होने के कारण हर मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है, शायद इसीलिए स्वतंत्र होता है। सागर में हवाएं पूर्वी चलती हैं, पर नौकाएं अलग-अलग दिशाओं में जाती हुई नजर आती हैं । वस्तुतः नौका उस ओर ही चलती है, जिस ओर की दिशा का निर्धारण करके नाविक उस पर पाल बांधता है । हमारी भी यही स्थिति है । हमारा जीवन भी उस ओर ही गतिशील होता है, जिस दिशा की ओर हमारी सोच होती है। जैसा बोए, वैसा पाए जीवन में वही तो फलता है, जैसा अतीत में उसका बीजारोपण हुआ है। जैसा बोए-वैसा पाए; पर प्रकृति की यह विचित्र व्यवस्था है कि जितना बोए उससे सौ गुना पाए । आम का एक बीज बोओ, तो हजार फल पाओ; बबूल Jain Education International 102 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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