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________________ प्रकृति के हाथों मनुष्य को एक ऐसी महान् सौगात मिली है, जिसने मनुष्य की उपयोगिता को हज़ार और लाख गुना ज्यादा बढ़ा दिया है। मनुष्य की यह क्षमता है-सोचने की क्षमता। अपनी इसी एक महानतम क्षमता के कारण मनुष्य धरती की संपूर्ण जीव-सत्ता में सर्वोपरि बन गया। सोचना, समझना और जीवन को बदलने में समर्थ होना मनुष्य की महानतम खोजों में से एक है। सोच ही मनुष्य है मनुष्य सोच सकता है, इसीलिए वह मनुष्य है। इससे भी बढ़कर बात यह है कि सोच ही मनुष्य है। मनुष्य की सत्ता से यदि सोचने-समझने की क्षमता को अलग कर दिया जाए, तो धरती पर मनुष्य की सत्ता का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा; वह एक निर्बल, असहाय दोपाया जानवर भर रह जाएगा। सोच मनुष्य की अस्मिता है। सोचने की क्षमता मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। इस एक शक्ति से उसके जीवन की सारी शक्तियां और गतिविधियां संयोजित हैं। मनुष्य का शारीरिक रूप से स्वस्थ और सबल होना अनिवार्य है, पर यह हमारी बदकिस्मती ही है कि हम केवल शरीर को ही स्वस्थ-सुंदर बनाने में लगे रहते हैं। उस तत्त्व के स्वास्थ्य और सौंदर्य पर ध्यान नहीं देते, जोकि शरीर और जीवन की समस्त गतिविधियों का आधार, स्वामी और प्रेरक है। हम अपने मन और उसकी सोच को स्वस्थ-सुंदर बनाने की बजाय केवल कार्यकेंद्रित ही हो जाते हैं। नतीजा यह निकलता है कि हम शरीर से भले कितने ही स्वस्थ क्यों न हों, मानसिक अवसाद, तनाव, घुटन, अनिद्रा, आक्रोश, उत्तेजना, ईर्ष्या, चिंता और प्रमाद के चलते न केवल रुग्ण ही बने रहते हैं, वरन् हमारा जीवन, जोकि हमारे लिए वरदान है, अभिशाप बना रहता है। हम अपने शरीर को नहलाने और संवारने में जितना वक्त लगाते हैं, क्या अपने मन के लिए उसका आधा-चौथाई वक्त भी लगाने की कोशिश करते 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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