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________________ सजगता : चित्त-रूपांतरण की कुंजी हमें चित्त के संक्लेशों से मुक्त होने के लिए चित्त और हर वृत्ति-अभिव्यक्ति पर सजग होना होगा। सजगता ही चित्त को रूपांतरित करने की कुंजी है। अगर हमने सजगता न बरती तो ध्यान रखें, चित्त में ऐसा एक अंधा प्रवाह बहता है, जो बड़ी-से-बड़ी शक्ति को भी अपने में बहा लेने की सामर्थ्य रखता है। हमें अपने आप पर थोड़ा संयम और नियंत्रण भी रखना होगा। भले ही इसे कोई दमन कहे, पर मैं इसे शमन कहूंगा। यदि अभिव्यक्ति ही चित्त-वृत्ति से मुक्त करती होती, तो यह भोगवादी संसार कभी का स्वस्थ और मुक्त हो गया होता। हमें आत्मनियंत्रण भी करना होगा और अपनी बुरी आदतों और अभिव्यक्तियों पर भी अंकुश लगाना होगा। माना कि जीवन में पलने वाले कुछ दुर्गुण प्रकृतिगत या वंशानुगत होते हैं, लेकिन ऐसी खामियों पर तो हम अपना अंकुश लगा ही सकते हैं, जिनसे कि हमारी निजता जुड़ी हुई है। पहले हम अपनी निजी व्यक्तिगत कमजोरियों पर विजय पाएं, एक दिन हम वंशानुगत एवं प्रकृति-प्रदत्त खामियों पर भी विजय प्राप्त कर लेंगे। चित्त को बदलना अथवा सुधारना टेढ़ी खीर है, पर अगर व्यक्ति थोड़ी बुद्धिमानी का उपयोग करे, तो उसकी वक्रता को सरल-सीधा किया जा सकता है। स्व-चित्त के प्रति स्वयं का सतत सावचेत रहना, यही गुर है चित्त को समझने-सुधारने और संवारने का। इसी से निखरता है व्यक्ति का मूल स्वरूप, स्वस्थ और प्रभावी स्वरूप। 99 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003877
Book TitleJiye to Aise Jiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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