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गांधी जब लंदन पहुंचे, तो वहां सभी सूट-बूट-टाई में थे, मगर वे उसी धोती में थे, वही अंगोछा कंधे पर डाले हुए, वही साधारण चप्पलें पैरों में पहने हुए। महारानी अगवानी के लिए खड़ी थीं। हज़ारों पैंट-कोट वालों के बीच उस अधनंगे फ़क़ीर का भी अपना क्या सौंदर्य था! उसकी खूबसूरती के आगे तो सभी का सौंदर्य फीका पड़ रहा था। ऐसा ही सौंदर्य निर्वस्त्र महावीर का और गेरुआ पहने बुद्ध का था। आदमी के जीवन में चलने वाला सत्य, शिव और सौंदर्य का सतत चिंतन उसे सुंदर करता चला जाता है। आप किसी बूढ़े आदमी को देखो, तो शायद देखने की इच्छा नहीं होगी, मगर गांधी, अरविंद, टैगोर, महादेवी, नेहरू अपनी सोच और चिंतन के चलते इतने सुंदर होते चले गए कि उस पूरी शताब्दी में ऐसे सुंदर पुरुष शायद ही हुए हों।
गांधी के विचार सौंदर्य को अभिव्यक्ति करने वाला एक और प्रसंग है। कहते हैं, गांधी सुबह के नाश्ते में रोजाना दस खजूर खाया करते थे। खजूर रात में ही भिगो दिए जाते थे, ताकि वे नरम हो जाएं। खजूर भिगोने का दायित्व वल्लभ भाई पटेल को सौंपा हुआ था। एक दिन वल्लभ भाई ने सोचा कि इतनी बड़ी काया और केवल दस खजूर! क्यों न आज पंद्रह खजूर भिगो दिए जाएं। यही सोचते हुए उन्होंने उस रात पंद्रह खजूर भिगो दिए। गांधी अगले दिन सुबह नाश्ता करने लगे। वे सारे खजूर खा गए, फिर उन्होंने कहा, 'क्या बात है भाई पटेल, आज खजूर ज़्यादा लग रहे हैं, ज़्यादा भिगोए थे क्या?' वल्लभ भाई ने कहा, 'बापू, अब आपसे क्या छिपाना? मैंने सोचा कि ये क्या रोज-रोज दस खजूर खाना। दस और पंद्रह में क्या फर्क पड़ता है, इसलिए मैंने आज दस के बजाए पंद्रह खजूर भिगो दिए।' वल्लभ भाई की बात सुनकर गांधी ने कहा, 'क्यों भाई, मैंने तो आपको केवल दस खजूर ही कहा था।' पटेल ने कहा, 'दस
और पंद्रह में क्या फ़र्क पड़ता है?' गांधीजी एक मिनट चुप रहे, फिर कहा, 'भाई पटेल, कल से तुम केवल पांच खजूर ही भिगोना।' पटेल ने सोचा कि यहां तो लेने के देने ही पड़
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