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बच्चा फिर जंगल में गया। वह अभी भी घबरा रहा था, फिर भी उसने साहस बटोरकर कहा, 'हां, मैं तुमसे प्यार करता हूं, आई लव यू।' जंगल उसी आवाज़ को लौटाने लगा, 'हां, मैं तुमसे प्यार करता हूं, आई लव यू।' जीवन का यह विज्ञान जीवन को एक अनुगूंज साबित करता है। जीवन में वही लौटकर आता है, जो तुमने किया है, कहा है। इसलिए अगर यह कहें कि 'आई हेट यू', तो सारा बह्मांड तुम्हारे प्रति घृणा और क्रोध से भर जाएगा और अगर कहो, 'आई लव यू', तो सारा ब्रह्मांड तुम्हें प्रेम की सौगातों से भर देगा। अगर चाहते हो कि मुझे औरों से हमेशा प्रेम, शांति और सौम्यता मिले, तो अपनी ओर से भी ऐसा ही सोचो, ऐसे ही विचार रखो, ऐसी ही वाणी का प्रयोग करो, ऐसा ही चरित्र रखो।
विज्ञान का यह प्रयोग करके देखें कि जब हम अपने चित्त में हिंसा का भाव लेकर किसी फूल के पास जाएंगे, तो वह फूल भी कंपित होने लग जाएगा। फोटोग्राफी की ताज़ा खोजें यही कहती हैं कि अगर प्रसन्न भाव को लेकर आप फूल के पास गए, तो मुरझाया हुआ फूल भी खिल उठेगा। यही प्रयोग इनसान के साथ भी किया जा सकता है। अगर आप प्रेम की भावना को लेकर किसी के घर पहुंचे हैं, तो आपकी ख़ातिरदारी का रूप ही कुछ और होगा। घर का वातावरण सोच पर प्रभावी सोच को हम कैसे बदलें, स्वस्थ सोच के स्वामी कैसे बनें? इस मुद्दे पर आने से पहले हम इस बात पर गौर करें कि आखिर वे कौन से कारण होते हैं, जिनके चलते हमारी सोच प्रभावित होती है? हमारी सोच सर्वप्रथम हमारे घर के वातावरण से प्रभावित होती है। आदमी के घर का जैसा वातावरण होगा, वैसी ही आदमी की सोच और विचारधारा रूप-आकार ले लेती है। अगर घर का वातावरण प्रेम पूरित है, तो आदमी के विचार भी वैसे ही प्रेममय होंगे और अगर घर का वातावरण कलहपूर्ण है, तो व्यक्ति के सोच-विचार भी वैसे ही होंगे। अगर घर में मियां-बीवी झगड़ते हैं, तो उसका असर बच्चों पर भी पड़ेगा, वे भी वैसा ही सीखेंगे। पति-पत्नी में प्रेम-अपनत्व
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