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किसी पड़ोसी के साथ दुर्व्यवहार किया, तो उस दुर्व्यवहार की तरंग ब्रह्मांड तक पहुंचेगी और आपके अधिकारी को प्रभावित करेगी, फिर आपका अधिकारी आपके साथ दुर्व्यवहार करेगा। यह जगत लौटाता है। अपने तरीके से लौटाता है। आप चलते वक्त अगर किसी चींटी को बचाते हैं, तो ऐसा करके आपने चींटी को ही नहीं, अपने आपको भी बचाया है, क्योंकि यह चींटी कोई और नहीं, संभव है हमारे अपने दिवंगत दादा जी ही इस रूप में हों। बच सको, तो इस तरह तुम पाप से बच जाओ। यह जगत की अनूठी व्यवस्था है।
जो व्यक्ति आज किसी बकरे को काटता है, तो वह यह मानकर चले कि अगले जन्म में वह भी बकरा बन सकता है, वह भी हलाल हो सकता है। आज तुम गर्व करते हो कि एक ही झटके में मैंने हलाल किया, वैसे ही तुम्हें काटते वक्त भी कोई ऐसा ही गर्व करेगा। जिस दिन जीवन का यह विज्ञान समझ में आ जाएगा कि यह जगत वही लौटाता है, जो तुमने दिया है, तो फिर तुम हर बुराई से बचने का प्रयत्न करोगे, तुम्हारा हर कृत्य सुकृत्य होगा, हर प्रयास सद्प्रयास होगा। लाइफ इज एन इको, जीवन और जगत मात्र एक-दूसरे की प्रतिध्वनि हैं, अनुगूंज हैं।
यह जगत कैसे लौटाता है, इसे एक मनोवैज्ञानिक घटना से समझें। कहते हैं, एक बार मां-बेटे के बीच झगड़ा हो गया। बेटा चार-पांच साल का था। गुस्से में आकर कहीं चला गया। वह पहुंचा बीच जंगल में और जोर-जोर से रोने लगा। चिल्लाने लगा, 'आई हेट यू, मम्मी, आई हेट यू। जैसे ही बच्चे के मुंह से शब्द निकले, वह बच्चा चौंक पड़ा। जंगल उसकी ही आवाज़ को प्रतिध्वनित कर रहा था। बच्चा घबराया कि इस जंगल में कोई और भी बच्चा रहता है, जो उससे नफ़रत करता है। बच्चे मां से भले ही कितने ही रूठ जाएं, लेकिन डर के क्षणों में वे उसी मां से जा लिपटते हैं। वह बच्चा भी मां की गोद में जा दुबका और उसने सारा वृत्तांत कह सुनाया। मां ने कहा, 'तुम एक काम करो, वापस जंगल में जाओ और वहां बड़े प्यार से, मुस्कान के साथ कहो, 'हां-हां मैं तुमसे प्यार करता हूं, आई लव यू।
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