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की सगाई और शादी नहीं हो पाएगी। मेरा तो जो होगा, सो होगा, पर मेरी बदनामी मेरी बहनों की जिंदगी तबाह कर देगी।' युवती की बात सुनकर स्वामी आनंद ने पूछा, 'तुम अब क्या चाहती हो?' युवती का उत्तर था, 'मैं चाहती हूं कि कोई भी युवक मुझसे विवाह कर ले।' स्वामी आनंद ने अपने कई शिष्यों को समझाया, मगर कोई भी तैयार न हुआ। आखिर पूरे समाज में बात फैल गई। बात कचहरी और पुलिस तक पहुंची। तारीख आ गई और स्वामी आनंद उस युवती को आश्वासन दे चुके थे कि तुम्हारी लाज किसी तरह मैं बचाऊंगा, तुम कोर्ट में पहुंच जाना। अगले दिन कोर्ट में दोनों आमने-सामने थे। युवती ने कार्यवाही से पहले पूछा, 'महोदय, क्या कोई तैयार हुआ?' स्वामी आनंद के चेहरे पर उदासी छा गई। उन्होंने कहा, 'मैं क्षमा चाहता हूं। कोई भी तैयार न हुआ।' स्वामी आनंद की बात सुनकर युवती चिंतित हो गई। स्वामी आनंद ने कहा, 'तुम मुझसे अब क्या चाहती हो?' वह बोली, 'मैं इतना ही चाहती हूं कि कोई भले ही जिंदगी-भर मेरे साथ न रहे, मगर कोर्ट में इतना भर कह दे कि मैं इसका पति हूं। इससे समाज में मेरी अपकीर्ति होने से बच जाएगी।' स्वामी आनंद ने कुछ सोचा और कहा, 'जा तू कोर्ट के भीतर, तेरी यह व्यवस्था हो जाएगी। तब उस भरी मजलिस में स्वामी आनंद ने घोषणा की कि 'मैं इसका पति हूं।' यह बात सर्वत्र पहुंचा दी जाए। सारी सभा सन्न रह गई। युवती की आंखों से आंसू झरने लगे, उसकी लाज बच गई थी। क्या स्वामी आनंद इतने महान थे? इतना बड़ा लांछन अपने पर ले लिया! युवती कोर्ट से बाहर आई, तो स्वामी आनंद उसके पांवों में गिरकर प्रणाम करके कहने लगे, 'मां, अब तू हमेशा प्रसन्न रहना। मुझे खुशी है कि लोग भले ही मुझे निंदित करें, अपमानित करें, लेकिन मैंने एक अबला की आबरू को बचा लिया। बस, स्वामी आनंद को इतने से ही संतुष्टि और तृप्ति है। बाकी तो संत की क्या निंदा, क्या यश-अपयश?
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