SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से घबराओ, न भूत से। घबराना तुम्हारे स्वभाव में ही न हो। जहां बराए, समझो लक्ष्य की नाव वहीं डूब गई। त्यागें हृदय की नपुंसकता भय से मुक्ति पाने के लिए पहले वे कारण तलाशने होंगे, जिनसे मनुष्य भयग्रस्त होता है। जहां तक मैं मनुष्य के मन को पढ़ पाया हूं, उसके मुताबिक मनुष्य की पहली जो स्थिति बनती है कि जिसके कारण आदमी भयग्रस्त होता है, वह है मनुष्य की पौरुषहीनता, सत्त्वहीनता, मनुष्य के मन में पलने वाली नपुंसकता। स्वयं में अगर कायरता या नपुंसकता आ जाती है, तो आदमी भयग्रस्त रहता है। शक्तिहीन होने के विचार मात्र से व्यक्ति भयग्रस्त हो जाता है। जब महाभारत का संग्राम छिड़ने को था, तो अर्जुन जैसा सामर्थ्यवान व्यक्ति भी अपने शस्त्रों को नीचे गिरा बैठा। कृष्ण ने क्या किया? केवल अर्जुन के चित्त में आ चुकी कायरता, नपुंसकता को दूर किया और गीता के रूप में एक महान संदेश दिया। ___ मुझ पर गीता का प्रभाव रहा है। मेरे हृदय में अभय का दीप जलाने में उसने मदद की है। ऐसा हुआ भी। बहुत वर्ष पहले की बात है। हम कच्चे रास्ते से माऊंट आबू पर चढ़ रहे थे, यात्रा चल रही थी। न जाने क्यों मुझे यह एहसास हो रहा था कि कुछ अनिष्ट होने वाला है। मैं निरंतर सचेत, सजग रहा। मैंने सभी को रोक लिया और निवेदन किया कि वापस सब लोग नीचे उतर जाएं, क्योंकि मुझे कुछ अनहोनी-सी स्थिति लग रही है। काफ़ी चढ़ाई चढ़ चुके थे, पर मेरे निवेदन पर सभी जन नीचे उतर आए। तीन दिन बाद वापस चढ़ना शुरू किया। कोई छः से सात किलोमीटर की यात्रा पूरी की होगी कि अचानक तेज सनसनाहट के साथ हवा आई और उस तेज़ हवा के साथ एक भयंकर मूठ आकर मुझ पर गिरी। मैं वहीं धड़ाम से गिर पड़ा। मुंह से खून की उलटी होने लगी। मैंने अपनी परा शक्ति का स्मरण किया। न जाने कहां से जलती हुई आग मेरे हाथों में आई और मैंने उस आग से मूठ की काट की। सारा रास्ता जैसे-तैसे कर पार हो गया, लेकिन फिर तो मेरी हालत यह हो गई कि मुझे लगा कि दिन हो या रात, कभी 69 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy