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________________ जीवन में इतना बोध काफ़ी है कि मैं प्रसन्न रहूंगा, ऐसी ही क्रियाएं करूंगा जिनकी प्रतिक्रियाएं सदा मधुर रहें, अगर किसी और के द्वारा गलत विचार, ग़लत टिप्पणी, कुव्यवहार हो भी जाए, तो यह मानकर शांत रहूंगा कि जरूर अतीत में मैंने ऐसे बीजों का वपन किया होगा, तभी तो ऐसी प्रतिध्वनियां लौटकर आती हैं । भविष्य मेरा स्वर्णिम और मधुरिम है, क्योंकि वर्तमान में ऐसे ही बीज बोता हूं, ऐसे बीज - वपन और सिंचन के लिए सजग रहता हूं, जिनसे सुंदर फूल खिलते हैं, छांहदार पत्ते लगते हैं, रस भीने फल निपजते हैं। हां, यह जीवन-दृष्टि ही वर्तमान को शांत और शालीन बनाती है और यही भविष्य के धरातल पर सुंदर इंद्रधनुष साकार करती है । Jain Education International 61 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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